दीपावली की तैयारी ऐपण से!
hys_adm | September 27, 2020 | 0 | कला साहित्य , कलावंत , मेले-त्योहार
खेतों का अनाज कोठारों तक पहुंचाने के बाद कुमाऊं का समाज घरों की साफ-सफाई पर जुट जाता है। दीपावली से पहले घर को ऐपण से जो सजाना होता है। इसलिए बरसात खत्म होते ही खेतों से अनाज कोठार में पहुंचाने की गहमागहमी रहती है। खेती की उपज कोठार (भंडार) पहुंचने के बाद घरों की साफ-सफाई जोरों पर होने लगती है। बरसात से बदरंग हुए घरों को करीने से साफ कर रंग-रोगन किया जाता है। फिर होता है ऐपण डालने का काम।
ऐपण लोक कला के कलावंत अधिकांशतः घरों की महिलाएं होती हैं, जो घर के बड़े बुजुर्गों से इसको सीखकर आगे बढ़ाती हैं। ऐपण कुमाऊं के लोक में चित्रकला की समृद्ध परम्परा है। इसको ऐपण करना या ऐपण चित्रकारी करना कहने के बजाय ऐपण डालना कहा जाता है। परम्परागत रूप से इसको उंगलियों से ही किया जाता है। किंतु वर्तमान में डिजाइन और बेहतर तरीके से बनाने के लिए ब्रश का भी उपयोग किया जा रहा है।
ऐपण को मुख्यतः घर के आंगन, दरवाजों, दीवारों, उखल, तुलसी, देवथान, खोली, सीढ़ियों पर उकेरा जाता है। इसके अलावा पूजा की थाली, कलश, चौकी, दीपक आदि पर ऐपण किया जाता है। लोक में मनाए जाने वाले विभिन्न त्योहारों में देवताओं की चौकियां बनाई जाती हैं। इसमें दिवाली में लक्ष्मी चौकी और पैर, शिवरात्रि के दौरान शिव-पार्वती, गणेश चौकी, शादी में धूलिअर्ग और कन्या चौकी के साथ ही विवाह मंडप, नामकरण, यज्ञोपवीत आदि अवसरों पर भी पंज देवताओं के प्रतीक की चौकियां ऐपण से तैयार की जाती हैं। ऐपण डालने के भी लोक में विधान है। इसमें जमीन पर चित्राकन केंद्र से बाहर यानि परिधि की ओर किया जाता है। वहीं खड़ी दीवारों पर यह ऊपर से नीचे की ओर रेखाकृतियों के जरिये किया जाता है।
मानव सम्यता में हुए बदलावों का ऐपण को बनाने के तौर तरीकों और सामग्री में भी बदलाव हुए हैं। पहले ऐपण के लिए चावल को भिगोकर सफेद रंग तैयार किया जाता था, स्थानीय लाल मिट्टी से पहले दिवारों को लीपा जाता था, उसके बाद चावल से बने घोल से चित्रकारी की जाती थी। धीरे-धीरे लाल मिट्टी की जगह गेरूआ ने ले लिया और चावल की जगह लोग कहीं-कहीं चूने का प्रयोग करने लगे। चावल और मिट्टी पर बनने वाली ऐपण जल्दी ही धुल जाती थी। हालांकि सालभर त्याहारों के अवसर पर इसको बनाने की परम्परा थी। धीरे-धीरे समय बदला पहाड़ में सीमेंट के घर बनने की शुरुआत हुई तो ऐपण में प्रयुक्त सामग्री में भी बदलावा हुआ। चावल और गेरूआ की जगह अब पेंट ने ले लिया। पेंट से बनने वाले ऐपण सालभर चल जाते हैं इनको हर त्योहार से पहले बनाने के बजाय दीपावली से पहले बनाया जाने लगा।
ऐपण चित्रकारी के लिए पहले लाल रंग से पट्टी यानि बेस तैयार किया जाता है। इसके बाद उसके ऊपर सफेद रंग से चित्रकारी की जाती है। चित्रकारी के लिए बेस ज्यादातर आयताकार होते हैं। हालांकि लक्ष्मी के पैरों के लिए या कुछ जगहों पर गोलाकार रूप में भी बनाए जाते हैं।
ऐपण डालने को लेकर एक मजेदार परम्परा है कुमाऊं में। वैसे तो हर घर की महिलाएं अपने-अपने घरों में ऐपण डालती हैं। कई घर ऐसे भी होते हैं, जहां ऐपण डालने के लिए लोग कम हैं और जगह ज्यादा तो गांव की महिलाएं उनके घरों में भी ऐपण डालने में मदद करती हैं। कुमाऊं में इस तरह की सामुदायिकता को बेट कहते हैं। बेट देने आई महिलाओं को उस घर में उनके लिए विशेष भोज बनता है।
कुमाऊं में युवाओं को ऐपण चित्रकला के लिए जागरूक करने खूब सारे आयोजन और प्रतियोगिताओं हो रही हैं। इनकी वजह से नई पीढ़ी तक इसको पहुंचाने में काफी मदद की है। नई पीढ़ी के युवा इससे अपनी पहचान और कला के संरक्षण को बखूबी कर रहे हैं। धीरे-धीरे भित्ती चित्रकारी की इस लोक शैली पर भी बाजार का दबाव बढ़ता जा रहा है। अब बाजार में ऐपण के स्टीकर बने बनाए आ रहे हैं। यह सस्ते और समय की बचत वाले होने के चलते प्रचलन में तेजी से बढ़ रहे हैं। हालांकि अभी लोक में हाथ से बनाए ऐपण को लेकर श्रद्धा और अपनत्व का भाव है, उस वजह से कुछ इसके बने रहने की आस दिखती है।
लेखक रश्मि डांगी समाज शास्त्र की अध्येता हैं। कुमाऊं के भोटिया जनजाति के बदलाव को लेकर लघु शोध किया है। पिथौरागढ़ निवासी रश्मि डांगी कुमाऊं की लोक परम्पराओं और संस्कारों को लेकर स्वतंत्र लेखन करती हैं।