मांगल गीतों की युवा आवाज बनीं नंदा-किरन

मांगल गीतों की युवा आवाज बनीं नंदा-किरन

hys_adm | October 17, 2020 | 3 | पहाड़ की बात

मांगल गीतों को लेकर पहाड़ की उभरती आवाज हैं नंदा और किरन। अपनी प्रतिभा की बदौलत चमोली के मांगल गीतों की प्रतिनिधि आवाज के तौर पर अपना स्थान बना रही है किरन-नंदा की जोड़ी। इनकी जुगलबंदी में गाए मांगल गीतों ने जहां यू-ट्यूब पर धाक जमाई है, वहीं विभिन्न मंचों पर भी इन्होंने अपनी प्रतिभा को लोहा मनवाया है।

Kiran Negi and Nanda Sati
चमोली जिले की किरन और नंदा पहाड़ की माटी से जुड़ी हैं।

नंदा-किरण की आवाज की खूबी यह है कि वे लोक के सच्चे प्रतिनिधि के तौर पर सहर्ष जगह बनाती जा रही हैं। लोक की शैली को उसी भाव, लय और भाषा में सहजता से प्रस्तुत करना लोगों को खासा पसंद आ रहा है। ग्रामीण पृष्ठभूमि की नंदा और किरन ने अपने घर-गांव में बड़े बुजुर्गों द्वारा गाए जाने वाले मांगल और होली के गीतों को सुना। इनके प्रति धीरे-धीरे ऐसा जुड़ाव बना कि दोनों ने घर-गांवों में इसको और ज्यादा जानने-समझने की शुरुआत की।

Kiran Negi and Nanda Sati

 

हारमोनियम पर मांगल गीतों की जुगलबंदी।

बकौल नंदा और किरन, हम बुजुर्गों से जितने ज्यादा मांगल गीतों को सुनते गए, उतने ही इनको सुनने और समझने की हमारी इच्छा बढ़ती गई। हमने अलग-अलग क्षेत्र के मांगल गीतों को सुना और उनके बारे में जाना। सीखने की यह यात्रा अभी भी जारी है। वे बताती हैं कि मांगल गीतों को गाने का अपना तरीका है। पहाड़ की परंपरा मांगल गायन से जुड़ी है। शादी, मुंडन और शुभकाज में जिस गीत को जिस वक्त या घड़ी में गाने का विधान है, उसको उसी दौरान गाया जाता है।

Kiran Negi and Nanda Sati

 

पहाड़ की परंपरागत खिड़की से झांकती नई उम्मीदों की ‘नंदा-किरन’।

नंदा-किरन कहती हैं, चमोली जिले में मांगल गीतों को गाने की जो शैली है, वह दिल को छू लेने वाली है। हमें लगता है कि उसमें किसी तरह की छेड़छाड़ करने के बजाय उसको उसी तरह सुनाया जाना चाहिए, इसीलिए हमने जब पहला गीत खुद ही यू-ट्यूब के लिए रिकार्ड किया तो इस बात का खास ध्यान रखा। लोक की मांगल गायन शैली हमें जितना आकर्षित करती थी, उतनी ही सोशल मीडिया पर लोगों ने इसे पसंद किया। कुछ ही दिनों में हमारा गाया गीत लोगों की जुबान पर चढ़ गया। हमें बहुत अच्छा लगा कि हमने लोक की शैली के साथ बिना छेड़छाड़ किए ही उन्हें सही लोगों तक पहुंंचाया है। आज जब कहीं भी किसी कार्यक्रम में जाते हैं तो श्रोताओं द्वारा चमोली के मांगल की फरमाइश आती है। उस वक्त हमें सच में बहुत खुशी होती है कि हम अपनी पुरानी पीढ़ी के इन गीतों को आगे पहुंचा पा रहे हैं।

kiran negi

 

kiran negi

अपने बारे में किरन नेगी बताती हैं कि वे नारायणबगड़ ब्लॉक के आल्यू गांव की रहने वाली हैं। उनके पिता उद्यान विभाग में कार्यरत हैं। अभी वे गढ़वाल विश्वद्यालय श्रीनगर से एमएसडब्लू की पढ़ाई कर रही हैं। भविष्य में सोशल वर्क में ही करिअर बनाने के साथ ही मांगल और लोक गीतों के संरक्षण और गायन पर फोकस करना चाहती हैं।

Nanda Sati

 

Nanda Sati

वहीं नंदा सती नारायणबगड़ गांव की रहने वाली हैं। पिता खेती-बाड़ी करते हैं। साथ में पंडिताई यानि पूूजा-पाठ का काम करते हैं। नंदा भी श्रीनगर में ग्रेजुएशन कर रही हैं। मांगल और लोक गीतों को लेकर किए गए काम को आगे बढ़ाना उनकी प्राथमिकता में शामिल है।

nanda kiran (9)नंदा और किरन अपनी साथियों के साथ।

नंदा-किरन कहती हैं कि लोग कहते हैं कि संस्कृति विलुप्त हो रही है, सब बर्बाद हो रहा है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ है, जिसको संरक्षित करने और सीखने-समझने की जरूरत है। हम गांव में दादी-मांजी या गांव के लोगों से इन गीतों को सुनाने के लिए कहते हैं। गांव के बड़े-बुजुर्ग कहते हैं, हमें पूरा याद नहीं हैं, लेकिन जब आप उनको बड़ी गंभीरता से सुनने लगते हैं और उनको विश्वास हो जाता है कि ये मजाक नहीं, बल्कि सच में सीखने के लिए सुनना चाह रहे हैं तो फिर वे बहुत ही शानदार तरीके पूरा सुनाते हैं। उनको सुनते-सुनते आप भी भावुक होने लगते हैं और उनके साथ गुनगुनाए बिना नहीं रह पाते हैं।

nanda kiran नंदा और किरन परंपरागत परिधान में।

वे कहती हैं, हमें जब भी अपनी पढ़ाई के बीच गांव जाने का समय मिलता है तो हम बड़े-बुजुर्गों से गीतों को सुनने के साथ ही उनको रिकार्ड कर लेते हैं। उनकी आवाज को फिर हम सुनते रहते हैं। आज युवाओं में भी लोक की इस वास्तविक शैली और आवाज को लेकर गर्व का भाव है। वे भी इन गीतों को गाना और सुनना चाह रहे हैं। हमारी भी कोशिश यही है कि इन गीतों को दूषित किए बिना इनको इनके मूल स्वरूप में लोगों तक पहुंचाया जा सके।

nanda kiran photo

 

नंदा और किरन की प्रस्तुति को बड़े मंचों पर भी सराहा जा रहा है।

नंदा-किरण बताती हैं कि पहाड़ में लोक गीतों को गाने के तरीकों में बहुत विविधता है। इनको किसी एक ही धुन में ही फिट कर देना ठीक नहीं है। हमारी कोशिश रहती है कि लोक की धुनों की विविधता बनी रहे। यू-ट्यूब पर मांगल और होली गीतों को पसंद किए जाने के साथ ही हमने अपने घर में भी इसका गायन शुरू किया। हमने अपने भाई की शादी में खूब तैयारी के साथ मांगल गाए। इसके लिए हमने अपने दोस्तों को भी इसमें जोड़ा और बकायदा मांगल गायन की टीम बनाई। इस सबको देखकर लोगों का हमें प्रोत्साहन और प्यार मिला। लोगों ने हमारे इस छोटे प्रयास की बहुत सराहना की। हमारी इस छोटी कोशिश में हमारी अच्छी टीम बन गई। आज जब भी कहीं मंच मिलता है तो हम साथियों की मदद से मांगल गायन करते हैं।

ध्यानार्थ : नवरात्र विशेष सीरीज की यह पहली कड़ी है। नवरात्र के नौ दिन हम आपको कला, संस्कृति, खेल, उद्योग, स्वरोजगार आदि क्षेत्रों में काम करने वाली उत्तराखंड की बेटियों की कहानी से रूबरू कराएंगे, तो फिर जुड़े रहिए हमारे साथ।

नवरात्रि विशेष : पहाड़ की बेटी चारू का अनोखा हिमालयन कैफे

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