मंजू टम्टा ने पहाड़ी पिछौड़ा को दिलाई पहचान
hys_adm | October 19, 2020 | 0 | पहाड़ की बात
पिछौड़ा भले ही उत्तराखंड की कुमाउंनी लोक संस्कृति का पहनावा रहा हो, लेकिन अब यह क्षेत्र और राज्य की सीमाओं को लांघ चुका है। आज इसे कहीं से भी, कभी भी, कोई भी मंगा सकता है। दिलचस्प बात यह है कि इसे चाहने वाले न सिर्फ उत्तराखंडी हैं, बल्कि पिछौड़ा pichora अब देश-दुनिया की महिलाओं की पसंद बनता जा रहा है।
यह सब संभव हो सका है, ऑनलाइन बाजार की बदौलत। और जब हम पिछौड़ा के ऑनलाइन बाजार का जिक्र करते हैं तो सबसे पहला नाम आता है मंजू टम्टा का। दिल्ली में पली-बढ़ी पहाड़ की बेटी मंजू टम्टा Manju Tamta ने खुद का स्टार्टअप शुरू कर पिछौड़ा को नई पहचान दिलाई। आज पहाड़ी ईकार्ट Pahadi Ekart नाम के इस स्टार्टअप ने न सिर्फ पहाड़ी परिधानों को खरीदने की राह आसान की है, बल्कि इन्हें दुनिया के बाजार में जगह भी दिलाई है। यही वजह है कि मंजू टम्टा को पिछौड़ा वुमन के नाम से जाना जाने लगा है। तो आइए जानते हैं, महिला उद्यमी मंजू टम्टा के इस दिलचस्प सफर को…
कई बार हमारे मन में एक अरमान होता है, जिसे हम सही समय पर चाहकर भी पूरा नहीं कर पाते। ऐसे में उसकी टीस हमें कुछ ऐसा करने के लिए प्रेरित करती है, जो सबके लिए प्रेरणा बन जाती है। कुछ ऐसे ही अधूरे अरमान को पूरा कराने की तमन्ना से शुरू होती है मंजू टम्टा के गृहणी से उद्यमी बनने की कहानी। बकौल मंजू, मैं उत्तराखंडी उत्पादों के साथ कुछ अनोखा करना चाहती थी। कुमाऊं का पारंपरिक पिछौड़ा मुझे बहुत आकर्षित करता था। अफसोस इस बात का था कि मैं कुमाउंनी होकर भी अपनी शादी में पिछौड़ा नहीं पहन पाई। मेरा परिवार दिल्ली में रहता था और पति का अंबाला में। ससुराल पक्ष पहाड़ी होकर भी पंजाब के कल्चर में रचा-बसा था, ऐसे में शादी में वहीं का कल्चर निभाते हुए मुझे पंजाबी चुन्नी पहननी पड़ी। वहीं से मन में पिछौड़े को लेकर एक कसक रह गई थी।
मंजू ने बताया हैं, 2015 में दिल्ली में मेरे छोटे भाई की शादी हुई। तब परिवार की महिलाओं ने तय किया कि सभी पिछौड़ा पहनेंगे। चंपावत से उन्होंने अपने रिश्तेदार से तीन पिछौड़े मंगवाए, लेकिन जब पिछौड़ा मिले तो उन्हें देखकर मन उदास हो गया। क्योंकि महंगे होने के बावजूद डिजाइन पसंद नहीं आए। मनमसोज कर उन्होंने शादी की रस्मों में वह पिछौड़े पहने और फिर मां के पास ही रखवा दिए। तभी ये विचार आया कि जैसे हम लोगों ने आकर्षक डिजाइन न होने की वजह से पिछौड़ा डंप कर दिया, ऐसे ही पहाड़ की कई युवतियां और महिलाएं होंगी, जो पहनना तो चाहती हैं, लेकिन यूनिक डिजाइन न होने की वजह से पिछौड़ा पहनने से झिझकती हैं।
उन्होंने देखा कि कई पहाड़ी लड़कियां शादी के बाद पंजाबी कल्चर से जुड़ा चूड़ा हाथों में सालभर पहनती हैं। आप अगर किसी दूसरे की परंपरा की अच्छाइयों को अपनाना चाहते हैं तो इसमें बुरी बात नहीं है, मैं इसका विरोध नहीं करती। लेकिन जब हम अपने पारंपरिक पिछौड़ा की बात करते हैं तो वही लड़कियां अच्छे डिजाइन और नयापन न होने की वजह से इसे पहनने से परहेज करती हैं। कई बार पिछौड़ा शादियों में सिर्फ रस्मअदायगी तक सिमट जाता है। इसके अलावा उन्होंने पाया कि बाजार में पिछौड़े की पहुंच आसान नहीं है। रामनगर, हल्द्वानी, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर, लोहाघाट समेत कुमाऊं क्षेत्र के छोटे-बड़े बाजार में तो पिछौड़ा आसानी से मिल जाता है, लेकिन देश के अन्य हिस्सों को छोड़िए देहरादून, ऋषिकेश, श्रीनगर समेत गढ़वाल मंडल के बड़े बाजारों में इसकी पहुंच न के बराबर है। दूसरे शहरों में बसे लोग कई बार चाहकर भी पिछौड़ा नहीं खरीद पाते हैं या फिर उन्हें मन पसंद चीज नहीं मिल पाती। यहीं से उन्हें अपनी मंजिल दिखाई देने लगी।
मंजू टम्टा के स्टार्टअप के दो पहलु स्पष्ट थे। पहला पिछौड़ा की परंपरागत छवि को बनाए रखते हुए इसे स्टाइलिश डिजाइनर लुक देना। दूसरा पिछौड़ा की पहुंच लोगों तक आसान बनाने के लिए इसे ऑनलाइन मार्केट में उतारना। क्योंकि जिस वक्त उन्होंने यह स्टार्टअप शुरू किया, ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफार्म पर पिछौड़ा की उपलब्धता न के बराबर थी। जो पिछौड़े ऑनलाइन उपलब्ध भी थे, वह महंगे और ग्राहकों को आकर्षित नहीं कर पा रहे थे। खुद का बिजनेस करने जैसा कदम उठाना, एक महिला के लिए इतना आसान नहीं होता, लेकिन यहां मंजू के लिए मददगार बना, उनके मायके वालों की तपस्या और ससुराल वालों को सपोर्ट।
मायके वालों की तपस्या से तात्पर्य है, उन्हें बचपन में अच्छी शिक्षा के साथ-साथ कुमाउंनी परिवेश मिला। लोहाघाट से ताल्लुक रखने वालीं मंजू का ससुराल गंगोलीघाट पिथौरागढ़ में है। उनके पिता 45 साल पहले लोहाघाट से दिल्ली में आकर बस गए थे। दिल्ली में रहकर भी परवरिश कुमाऊं कल्चर में हुई। यही वजह है कि दिल्ली में रहकर भी वह अपनी जड़ों से जुड़ी रहीं। बचपन में कभी गर्मियों की छुट्टियां तो कभी देवता पूजा के लिए गांव जाना लगा रहता था। मंजू की पढ़ाई दिल्ली के नामी स्कूल हुईं। उन्होंने जहां लेडी इरविन स्कूल से 12वीं तक की पढ़ाई की। वहीं श्री राम कॉलेज फॉर वुमन से इंग्लिश लिटरेचर में ग्रेजुशन किया। परिवार को सपोर्ट मिला और लड़की होने के बाद भी नौकरी करने नहीं रोका गया। मंजू को ताज ग्रुप ऑफ होटल्स दिल्ली में कॉक्स एंड किंग्स के ट्रेवल डिपार्टमेंट में जॉब मिल गई। यहां उन्होंने बहुत मेहनत की और बहुत कुछ सीखा। सात साल तक बतौर सीनियर मैनेजर काम किया।
मंजू बताती हैं, 2003 में उनकी शादी हुई। उनके पति सिविल इंजीनियर हैं और तब उनकी पोस्टिंग श्रीनगर गढ़वाल में थी। परिवार से दूर दिल्ली में नौकरी करना मंजू को अच्छा नहीं लगा। ऐसे में उन्होंने अपनी इच्छा से नौकरी छोड़ अपने पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन किया। लेकिन शादी के बाद भी वह सीखने और सीखाने की प्रक्रिया में सतत लगी रहीं। गढ़वाल के शिक्षा हब श्रीनगर में रहते हुए उन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन और एमबीए किया। नेट क्वालिफाई किया और पीएचडी के लिए भी इनरोल हो गईं। उन्हें डिग्री कॉलेज में पढ़ाने का ऑफर मिलने लगा, लेकिन उनकी दिलचस्पी इस फील्ड में नहीं थी। 2013 में उनका परिवार देहरादून आ गया। परिवार में पति और दो बच्चे हैं, बड़ा बेटा और बेटी दोनों स्कूलिंग कर रहे हैं।
अब बात करते हैं ससुराल वालों के सपोर्ट की। देहरादून में जब मंजू ने अपने पति से स्टार्टअप का प्लान शेयर किया तो उन्होंने हौसला अफजाई की। पूरा सपोर्ट किया, यहां तक की सीए और कंपनी रजिस्टर कराने में मदद की। मंजू कहती हैं उनके पति उनके काम में हस्तक्षेप नहीं करते, बल्कि जब भी उन्हें कहीं दिक्कत आती है तो पूरा सपोर्ट करते हैं।
मंजू कहती हैं, पंजाब की फुलकारी (चुनरी) हो या चूूड़ा, बंगाल का शाका हो या पोला बैंगल्स ये हिन्दू शादियों के प्रतीक बन गए हैं। ऐसे में हम पिछौड़ा या रंगीली पिछौड़ी को क्यों न शादियों या शुभकार्यों की पहचान बनाएं। इसी सोच के साथ 2018 में उन्होंने अपने स्टार्टअप की शुरुआत की। सबसे पहले कंपनी रजिस्टर कराई। अब कारीगर और बेस्ट फेब्रिक (कपड़ा) चाहिए था। यह काम चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि उन्हें मार्केट में सबसे हटकर चीज पेश करनी थी। कहते हैं न जब किसी काम को बड़ी शिद्दत से करते हैं तो ऊपर वाला भी आपकी मदद करता है। मंजू बताती हैं, उनके एक परिचत दिल्ली में रहते हैं। उन्होंने कारीगर के लिए देहरादून में रहने वाले मित्र के साथ काम करने वाली महिला से मिलवाया और फिर काम की शुरुआत हुई।
मंजू ने बताया कि पहले सिर्फ 30 पिछौड़ा के लिए कपड़ा मंगवाकर डिजाइन रेडी कराया। वह डिजाइन जब उन्होंने अपने फ्रेंड सर्किल में दिखाया तो सभी को बेहद पसंद आया। अब प्रोडक्ट तैयार था और इसे ऑनलाइन बाजार में उतारना था। इसके लिए सबसे अच्छा विकल्प एमेजॉन Amazon था। क्योंकि Amazon की पहुंच बहुत बेहतर लगी। एमेजोन पर उनके प्रोडक्ट को हाथों-हाथ लिया गया। क्योंकि उनके पिछौड़े आकर्षक थे। दिल्ली, मुंबई, भोपाल और बेंगलरू में रहने वाले पहाड़ी लोगों ने डिजाइनर पिछौड़े जब Amazon पर देखेे तो फूले नहीं समाए। उनके प्रोडक्ट की खूब तारीफ हुई। इससे उन्हें नई ऊर्जा मिली और उन्होंने नए-नए डिजाइन पर काम शुरू किया।
मंजू अपना एक अनुभव शेयर करते हुए बताती हैं, उनके सबसे पहले जो पिछौड़ा के ग्राहक थे उन्होंने बेंगलरु से ऑर्डर किया था। बागेश्वर के रहने वाले योगेश भट्ट जी बेंगलरू में आईटी सेक्टर में जॉब करते हैं। उनका बेबी होने वाला था और वो चाहते थे कि उनकी पत्नी बच्चे के नामकरण पर पिछौड़ा पहनें। उन्होंने नासिक में रहने वाले रिश्तेदार से पिछौड़ा मंगवाने को कहा, लेकिन निराशा हाथ लगी। यूं ही चेक करने के लिए उन्होंने जब एमेजॉन पर पहाड़ी पिछौड़ा टाइप किया तो हमारा यानी पहाड़ी ईकार्ट का डिजाइनर पिछौड़ा उन्हें दिखा। ऐसे में वह फूले नहीं समाए। यह बात उन्होंने विशेषकर Amazon टीम को भी शेयर की। यहीं से मोटीवेशन मिला। वह अपने प्रोडक्ट को सही बजट में बेहतर बनाने में जुट गईं। ताकि लोग खुशी और गर्व के साथ इसे पहनें और अपने पास संजोकर रखें।
न सिर्फ पहाड़ी, विदेशियों को भी भा रहा पिछौड़ा
ऑनलाइन बाजार का ही कमाल है कि मंजू टम्टा का डिजाइन किया गया पिछौड़ा पहाड़ी महिलाओं के साथ देश के अन्य जाति-धर्म की महिलाओं को भी भा रहा है। उन्हें कई गैर हिन्दू लड़कियां भी संपर्क करती हैं, जिनकी शादी होने वाली होती हैं। वह कहती हैं कि उनके लिए भी ये दुपट्टा डिजाइन कर दीजिए, बस धार्मिक चिह्न न हो उसमें। बहुत खूबसूरत है आपका पिछौड़ा। ऐसे कमेंट मिलते हैं। हाल ही में दिल्ली में रहने वाली एक झारखंड की महिला ने उनसे संपर्क कर कहा कि उन्हें डिजाइन बहुत पसंद आया है। उनकी मां दिल्ली आ रही हैं तो उन्हें वह यह पिछौड़ा गिफ्ट करेंगी, इसे भिजवा दीजिए। हाल ही में बेल्जियम का विदेशी जोड़ा, जो भारतीय संस्कृति, परंपरागत ड्रेस और ज्वेलरी से काफी प्रभावित हैं। उन्होंने उनसे पहाड़ी ज्वेलरी और पिछौड़ा मंगवाने के लिए संपर्क किया। उन्हें पिछौड़ा और ज्वैैलरी काफी पसंद आए।
कुमाऊं का शाह परिवार भी मंजू के पिछौड़े का कायल
कुमाऊं के परंपरागत पिछौड़ा का इतिहास यहां के शाह परिवार से जुड़ा है। शाह परिवार की कई महिलाएं आज भी अपने हाथ से बना पिछौड़ा पहनती हैं। शाह परिवार से जुड़े वैज्ञानिक नागेश शाह लखनऊ में रहते हैं। उन्होंने पिछौड़ा पर किताब भी लिखी है। मंजू ने बताया कि नागेश शाह ने अपनी बेटी की शादी के लिए उनसे पिछौड़ा डिजाइन करवाया। जब पिछौड़ा लखनऊ पहुंचा तो शाह परिवार के सदस्य इसे देखकर गदगद हो गया। उनके परिवार की महिलाओं ने इसे खूब सराहा। पर्सनल फोन करके उनके काम की तारीफ की। फिर क्या था उनकी बेटी के शादी के लिए परिवार की सभी महिलाओं के लिए उन्होंने पिछौड़ा डिजाइन कर भिजवाए।
आइडिया चोरी करने वाले बने चुुुुुुुनौती
मंजू टम्टा कहती हैं, जब उन्होंने पहाड़ी पिछौड़ा को ऑनलाइन बाजार में लांच किया तो कुछ लोगों ने उनका यह आइडिया चुरा लिया। इतना ही नहीं उनके डिजाइन चुराकर हुबहु कॉपी प्रोडक्ट बेचने लगे। मॉडल की तस्वीरें तक भी हुबहु नकल कर डालने लगे। इससे उन्हें थोड़ा बुरा लगा, लेकिन वह जानती थीं कि आइडिया चुराने वाले जल्द मात खा जाएंगे और ऐसा ही हुआ, उनके प्रोडक्ट को कॉपी करने वाले प्रोडक्ट तो हुबहू बना दे रहे हैं, लेकिन वह क्वालिटी नहीं दे पाते, जो उनके प्रोडक्ट में है। वह अपने प्रोडक्ट को खुद डिजाइन करती हैं। कलर, कपड़ा, कड़ाई चीजें चुन-चुन कर पिछौड़ा को सजाती हैं। शादी के ऑर्डर पर वह फोकस करती हैं, ताकि दुल्हन की सुंदरता को चार चांद लग सकें। वह कहती हैं, अब ऑनलाइन बाजार में कई लोग पहाड़ी प्रोडक्ट उतार रहे हैं। इसलिए उन्होंने भी प्रतिस्पर्धा को देखते हुए कम रेंज में बढ़िया प्रोडक्ट की शृंखला उतारी है।
..और ऐसे मिला पहाड़ी ज्वैैलरी का आइडिया
मंजू कहती हैं, उन्होंने शुरुआत पहाड़ी पिछौड़ा से की। इस बीच जब वह एक दिन अपनी मॉडल के साथ फोटो शूट करा रही थीं तो मॉडल ने पहाड़ी नथ, गुलबंद, पौंछी आदि भी पहने थे। उनका फोटोग्राफर पंजाबी था, फोटोग्राफर ने उसने पूछा कि यह पहाड़ी ज्वैैलरी Pahadi jewellery क्या गोल्ड की हैं। मंजू ने उन्हें बताया कि नहीं आर्टीफिशियल हैं। फोटोग्राफर ने ज्वेलरी की तारीफ की और बताया वह कई पहाड़ी शादियां कवर कर चुके हैं, लेकिन उनकी ज्वेलरी काफी यूनिक हैं। यहीं से उन्हें पिछौड़े के साथ पहाड़ी ज्वैैलरी को बाजार में उतारने का ख्याल आया। उन्होंने यह आर्टिफिशियल ज्वैैलरी भी बाजार में काफी रिसर्च के बाद तैयार करवाई हैं। अब कस्टमर भी पिछौड़ा के साथ पहाड़ी ज्वैैलरी का सेट भी ऑर्डर करते हैं। कई सोशल मीडिया पर एक्टिव लड़कियां भी उनसे कांटेक्ट करती हैं। वह अपने पहाड़ी स्टाइल के फोटो और वीडियो बनाने के लिए उनसे ज्वेलरी खरीदती हैं। शादी सीजन, करवाचौथ के समय उनके प्रोडक्ट हाथों-हाथ लिए जाते हैं। उत्तराखंड की चर्चित youtube ब्लॉगर राखी धनाई ने भी पिछौड़ी और ज्वैैलरी की तारीफ करते हुए वीडियो जारी किया था।
मदद करने वाले बढ़ा रहे हौसला
मंजू कहती हैं, उनके साथ बहुत सारे लोग जुड़े हैं, जो उन्हें बिना कोई पैसे लिए सहयोग करते हैं। यही लोग उनका हौसला भी बढ़ाते हैं। कई लड़कियां उनके साथ शौकिया रूप से मॉडलिंग करती हैं। उनके कई परिचित सोशल मीडिया और ब्रांड प्रमोशन में उनकी हेल्प करते हैं। वह कहती हैं, अभी जो भी कमाई होती है, वह उसे नए प्रोडक्ट पर इनवेस्ट कर देती हैं। हां, कारीगर और स्टाफ को पूरा मेहनताना देती हैं। जो लोग उन्हें वॉलियंटरी सपोर्ट करते हैं, उन्हें वह अपने प्रोडक्ट या गिफ्ट भेजकर उनका आभार जताती हैं।
मौजूदा समय में यह प्रोडक्ट बाजार में उतारे
मंजू की कंपनी ने डिजाइनर पिछौड़ा, टिहरी नथ, कुमाउंनी नथ समेत अन्य पहाड़ी डिजाइन की नथें, गुलबंद, पौंछी, मांग टिक्का, झुमकी बाजार में उतारी हैं। हाल ही में उन्होंने नवरात्र को लेकर थाल पोश और पूजा से जुड़े नए उत्पाद उतारे हैं। इन नए उत्पादों को भी खूब पसंद किया जा रहा है।
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ध्यानार्थ : नवरात्र विशेष सीरीज की यह तीसरी कड़ी है। नवरात्र के नौ दिन हम आपको कला, संस्कृति, खेल, उद्योग, स्वरोजगार आदि क्षेत्रों में काम करने वाली उत्तराखंड की बेटियों की कहानी से रूबरू कराएंगे, तो फिर जुड़े रहिए हमारे साथ।