मंग्ल्यौर! पहाड़ में इनके बिना अधूरे हैं शुभकार्य... -

मंग्ल्यौर! पहाड़ में इनके बिना अधूरे हैं शुभकार्य…

hys_adm | September 27, 2020 | 0 | परम्परा , पहाड़ की बात

इसको चाहत, प्रेम या समर्पण क्या नाम दें! शायद इसको शब्दों में बयां करना मुश्किल है। यह तो बस फना होने जैसा है, जिसमें किसी एक के बिना दूसरे के अस्तित्व की कल्पना करना बेमानी है। यही सब बरबस मन में आता है, जब हम पहाड़ के मांगल गायकी के जनगीतकारों को देखते हैं। हम उन्हें ‘मंग्ल्यौर’ के नाम से ही तो जानते हैं। मंग्ल्यौर! यह शब्द उन फनकारों के लिए है, जिन्होंने सदियों से चले आ रहे मांगल गीतों को सहेज कर नई पीढ़ियों तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया है।

कुमाउंनी शादी का दृश्य। फोटो साभार : इंटरनेट

पहाड़ में शादी, मुंडन, सगाई जैसे कारज की शुरुआत ही ‘मग्लयौर’ के कर्णप्रिय गीतों से ही होती है। ये गीत आशीष के, मंगलकामना के, बधाइयों के, भविष्य के सुझावों से लबरेज होते हैं। इनकी वाहक होती हैं, गांव की महिलाएं, जो अंतिम सांसों तक इसको बनाए रखने, बचाए रखने में अपने आप को झोंक देती हैं।

मांगल गीतों की रचना और रचनाकार के बारे में जब भी खोज खबर होती है तो हमेशा इनकी प्रक्रियाओं और शब्दों को देखकर लगता है कि यह किसी एक व्यक्ति ने एक दिन में ही नहीं, लिखा बल्कि यह पीढ़ी दर पीढ़ी लाखों लाख महिलाओं ने इनको रचा और गाया है। पुराने गीतों के गायन के साथ साथ समसामयिक जरूरतों के हिसाब से इनमें शब्द जुड़ते गए। ये एक नदी की तरह है, जिनमें हजारों जलधराएं जुड़ कर नदी बनाती है। इसको कहना कठिन है कि कौन सी जलधारा मुख्य नदी है।

उत्तराखंड में मांगल गायकी के इन जनगीतकारों में हर गांव में इस विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। हर मांगल कारज में इनकी उपस्थिति उसको यादगार बना देती है। इन गीतकारों का लोक में व्याप्त इन गीतों के वैभव को इस जिंदादिली से जीना आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा देने वाली है।

शहर में पहाड़ी परंपरा से सजी शादी का दृश्य. फोटो साभार : इंटरनेट

किसी भी मांगल कारज में मांगल गीतों की शुरुआत पंचनाम देवताओं को याद करने से होती है। इसमें गणेश, नारायण, सूर्य, चंद्रमा और पंचनाम देवताओं को याद किया जाता है। इसके साथ ही शादी या मुण्डन में जो भी प्रक्रियाओं को संचालित करने वाले लोग हैं, उनको आमंत्रित करने के लिए किए जाते हैं। इनमें पंडित, औजी, मंग्ल्यौर, मुण्डन के लिए नाई आदि का विवरण आता है।
इन्हीं गीतों में दुल्हन, दूल्हा या मुण्डन किए जाने वाले बच्चे की तरफ से धन्यवाद के लिए भी खूब सारे गीत होते हैं। इनमें राजी खुशी, स्वास्थ्य और सदासुहागन रहने जैसी बातों का जिक्र आता है।
चमोली जिले की प्रसिद्ध ‘मंग्ल्यौर’ घाटी देवी बताती हैं कि गांव में उन्होंने बड़ी बुजुर्ग महिलाओं के साथ मांगल गीत सीखा और पिछले 50 से ज्यादा सालों से वे अपने साथियों के साथ इसको गा रही हैं। कड़ाकोट क्षेत्र में एक दौर था, जब हर गांव में बड़ी संख्या में मंग्ल्यौर की टोली हुआ करती थी। यह संख्या धीरे-धीरे कम हो रही है। यह सुखद है कि आज भी अधिकांश गांवों में महिलाएं मांगल गीत को गा रही हैं।

शुभकार्यों के साथ ही मांगल गीत सांस्कृतिक समारोहों का भी हिस्सा बनने लगे हैं। फोटो : टीम हिमालया लवर्स

मांगल गीतों को गाने में एक बहुत बड़ी खूबी यह है कि इसमें किसी खास जाति का होना जरूरी नहीं है। यह तो पसंद और आवाज पर निर्भर करता है कि कौन मंग्ल्यौर बनेगा। शायद यही कारण है कि आज भी सैकड़ों महिलाएं हैं, जो मांगल गीतों को गाती हैं।
इसके पीछे दूसरा कारण यह भी है कि मांगल गीतों को गाने वालों का स्थान किसी भी शुभ कार्य में पंडित से जरा भी कम नहीं है। वह पंडित के मंत्रोचार के साथ-साथ कदमताल करती हुई अपने गीतों के जरिए को बढ़ाती हैं।

हालांकि उत्तराखंड के कई क्षेत्रों में आज भी मांगल गीत गाने वाली लोकगीतकारों की बड़ी संख्या अपने आप में सुखद अहसास भी कराती है। अब जरूरत है कि मांगल गीतों के शब्द, मर्म और इन मंग्ल्यौरों की आवाज को संरक्षित करने की ताकि आने वाली पढ़ियों को यह धरोहर उसी रूप में पहुंच पाए, जिस रूप में इन्होंने इसे संजोकर रखा है। साथ ही अब प्रयास इस बात के भी होने चाहिए कि मांगल गीतों के गायन को सीखने के लिए कुछ खास प्रक्रियाएं की जाएं। ऐसे आयोजन किए जाएं, जिससे मांगल गायन परम्परा को बल मिल सके।

(लेखक ‘जगमोहन चोपता’ का यह लेख ‘कड़ाकोट दस्तावेज’ पुस्तक से लिया गया है। जिसे लेखक की अनुमति से प्रकाशित किया जा रहा है। समसामायिक दृष्टि से लेख में मामूली बदलाव किए गए हैं।)

Related Posts

meenakshi khali aipan girl

मीनाक्षी ने ऐपण कला को दिए…

hys_adm | October 20, 2020 | 0

लोककलाओं को उनके मूल स्वरूप बरकरार रखते हुए उसमें नए-नए प्रयोग लोगों को खूब भाते हैं। इससे जहां अपनी जड़ों से जुड़े रहने का मौका मिलता है, वहीं इस कला…

haisoli

लोकगीतों, कहानियों और किस्सों में रचाबसा…

hys_adm | July 19, 2020 | 0

प्रकृति ने पहाड़ों को दिल खोल कर उपहार दिये हैं। देखिये न यहीं उपहार यहां के जंगलों में भांति-भांति के फल, फूल और कंद-मूल के रूप में बिराजमान हैं। आप…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *