उत्तराखंड में देवभूमि और वीरभूमि की साझा विरासत

उत्तराखंड में देवभूमि और वीरभूमि की साझा विरासत

hys_adm | July 28, 2022 | 1 | धार्मिक स्थल

क्या आप जानते हैं, उत्तराखंड में एक ऐसा मंदिर स्थित है, जहां विराजने वाली ईष्ट देवी मां काली न सिर्फ अपने भक्तों की रक्षा करती है, बल्कि भारतीय सेना के जवानों की भी रक्षक है। जी हां, कहा जाता है कि जितनी मान्यता जय काली कलकत्ते वाली मां की है, उतनी ही मान्यता यहां पर विराजने वाली कालिका माता की भी है। यह भारतीय सेना में सबसे पराक्रमी कहलाने वाली कुमाऊं रेजीमेंट की आराध्‍य देवी हैं। तो आइए जानते हैं, इस पौराणिक मंदिर से जुड़ी बेहद दिलचस्प बातें.

पौराणिक धार्मिक स्थलों के चलते उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। साथ ही इसे सेना के प्रति समर्पण और वीरता के लिए वीरभूमि के नाम से भी जाना जाता है। जितनी आस्था और सम्मान का भाव उत्तराखंड के लोग अपने लोक देवताओं के प्रति रखते हैं, उतनी की सिद्दत से देश की रक्षा के लिए समर्पित रहते हैं। लोक आस्था और सैन्य परंपराओं की अनूठी विरासत को सहेजे हुए है उत्तराखंड का प्रसिद्ध मां हाट कालिका मंदिर।

उत्तराखंड (Uttarakhand) के कुमाऊं मंडल (Kumaon division) का जिला है पिथौरागढ़ (Pithoragarh)। पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट  (Gangolihat) नामक स्थान पर मां हाट कालिका मंदिर (Haat Kalika Temple) नाम से स्थित है यह प्रसिद्ध देवस्थल। गंगोलीहाट बाजार से करीब एक किलोमीटर उतराई वाले पैदल रास्ते से मंदिर तक पहुंचा जाता है। सुंदर देवदार के जंगल के बीच बड़े सुरम्य वातावरण में मां काली का यह मंदिर सुशोभित है। मंदिर के बारे में उल्लेखित है कि गुरु शंकराचार्य ने महाकाली माता का यह शाक्तिपीठ कुमाऊं मंडल में भ्रमण करते समय स्थापित किया था। यह भी मान्यता है कि महाकाली माता ने पश्चिम बंगाल से अपने घर को इस जगह स्थानांतरित कर दिया था, तब से इस क्षेत्र में इन्हें लोकप्रिय देवी के रूप में पूजा जाता है।

हाट कालिका मंदिर में विराजमान महाकाली इंडियन आर्मी की कुमाऊं रेजिमेंट की आराध्य देवी हैं। बताया जाता है कि कुमाऊं रेजिमेंट के जवान युद्ध या मिशन पर जाने से पहले मां हाट कालिका की आराधना अवश्य करते हैं। यही वजह है कि इस मंदिर में कई गेट और धर्मशालाओं पर कुमाऊं रेजिमेंट की बटालियन या आर्मी अफसर का नाम जरूर मिल जाएगा। 1971 में पाकिस्तान के साथ छिड़ी जंग के बाद कुमाऊ रेजीमेंट ने यहां पहली मूर्ति स्थापित की थी। इसके बाद कुमाऊं रेजिमेंट ने साल 1994 में भी यहां बड़ी मूर्ति चढ़ाई थी। हाट कालिका मां के कुमाऊं रेजिमेंट की आराध्‍य देवी बनने की एक कहानी बेहद प्रचलित है। बताया जाता है कि एक दफा युद्ध के दौरान कुमाऊं रेजीमेंट की एक टुकड़ी पानी के जहाज से कहीं कूच कर रही थी, इस दौरान जहाज में तकनीकी खराबी आ गई और जहाज डूबने लगा। इस मुश्किल घड़ी में जवान अपने परिजनों को याद करने लगे तो टुकड़ी में शामिल पिथौरागढ़ निवासी एक जवान ने मदद के लिए हाट कालिका मां का आह्वान किया, जिसके बाद देखते-देखते डूबता जहाज पार लग गया। कहा जाता है कि यहीं से हाट कालिका कुमाऊं रेजि‍मेंट की आराध्य देवी बन गईं। आज भी कुमाऊं रेजिमेंट की तरफ से मंदिर में नियमित तौर पर पूजा-अर्चना की जाती है। इतना ही नहीं कुमाऊं रेजिमेंट का युद्धघोष भी ‘कालि‍का माता की जय’ है। आप देख सकते हैं, गेट पर लिखा कुमाऊं रेजिमेंट की बटालियन का नाम, यह सेना और मंदिर के बीच आस्था के अनूठे रिश्ते की तस्दीक करता है।

गंगोलीहाट स्थित हाट कालिका का मंदिर श्रद्धालुओं और सैलानियों के लिए बहुत ही शानदार जगहों में से एक हैं। घने देवदार के पेड़ों के बीच स्थित यह मंदिर साधना और मनोकामनापूर्ति लिए प्रसिद्ध है। हाट कालिका मंदिर पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है। इसके अलावा हल्द्वानी, देहरादून, दिल्ली से सड़क मार्ग से आसानी से पहुंचा जा सकता है। गंगोलीहाट के लिए आपको हल्द्वानी से सीधी बस या टैक्सी सविस भी मिल जाएगी। अगर आप हाट कालिका मंदिर आते हैं तो प्रसिद्ध पाताल भुवनेश्वर मंदिर के भी दर्शन कर सकते हैं, जो यहां से सिर्फ 12 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। चलिए अब आपको मंदिर परिसर से रूबरू कराते हैं। मंदिर से ठीक पहले खूब सारी दुकाने हैं, जिनके बीच से मंदिर के लिए मुख्य द्वार बना है। द्वार से मंदिर तक पैदल रास्ते के बीच आप खूब सारी घंटियां देख सकते हैं, जो यह श्रद्धालुओं ने भेंट की है। ठीक बीच रास्ते में गणेश मंदिर मिलता है, जहां से मुख्य मंदिर दिखने लगता है। मंदिर के चारों ओर विशालकाय देवदार के पेड़ इस जगह को और भी आकर्षक बना देते हैं। मां हाट कालिका मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु आकर देवी काली के दर्शन करते हैं।

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