
औषधीय गुणों की खान है कौणी
hys_adm | September 27, 2020 | 1 | खेती-किसानी , पर्यावरण
पहाड़ी ढ़लानों पर सीढ़ीदार खेतों की मेडों पर लहराती कौंणी की फसल बला की खूबसूरत लगती है। सियार की सुनहरी पूंछ सी खेतों के किनारे हिलती-डुलती रहती है। कौणी विश्व की प्राचीनतम फसलों में से एक है। चीन में तो नवपाषाण काल में भी इसके उपयोग के अवशेष मिलते हैं।
यह बाजारा की ही एक प्रजाति है। जिसे अंग्रेजी में फाॅक्सटेल मिलेट कहा जाता है। इसकी बाली को देखकर ही संभवतः इसे अंग्रेजी में यह नाम दिया गया हो। खेतों में जब यह पककर तैयार होती है तो किसी पूंछ की तरह कौंणी की पौध से लहराती रहती है।
कौणी पोएसी posceae परिवार का पौधा है। इसका वैज्ञानिक नाम सेतिरिया इटालिका setaria italica है। इसको संस्कृत में कंगनी तो गुजराती में कांग नामों से जाना जाता है। यह भारत, रूस, चीन, अफ्रीका और अमेरिका आदि देशों में उगाया जाता है। विश्वभर में कौंणी की लगभग 100 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं।
कौंणी गर्म मौसम में उपजने वाली फसल है। इसलिये उत्तराखण्ड में इसकी खेती ज्यादातर धान के साथ ही की जाती है। इसको धान व झंगोरा के साथ खेतों में बोया जाता है। धान के खेतों के किनारे-किनारे कौणी और झंगोरा बोया जाता है। कोणी की जड़े काफी मजबूत और मिट्टी को बांधे रखती है इसलिये यह खेतों के किनारों को भी टूटने या मिटटी के बहने से रोकती है। इसकी कटाई सितम्बर-अक्टूबर में होती है।
उतराखण्ड में इसको खीर व भात बनाकर खाया जाता है। कौणी की खीर और कौणी का खाजा-बुखणा किसी दौर में बहुत प्रचलित था। इसका खाजा कटाई के दौरान ही भूनकर तैयार किया जाता है। लेकिन विकास और आधुनिकता की दौड़ ने पहाड़ के रहवासियों ने इसको मुख्य खाने से किनारे कर लिया है।
इसमें डाइबिटिज के रोगियों के लिये बहुत उपयुक्त माना जाता है। इस वजह से भी धीरे-धीरे बाजार में इसकी मांग बढ़ रही है। इसके बिस्कुट, लड्डू इडली-डोसा और मिठाइयां काफी पसंद की जा रही है। इसके अलावा ब्रेड, नूडल्स, चिप्स तथा बेबी फूड, बीयर, एल्कोहल तथा सिरका बनाने में भी प्रयुक्त किया जा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन की सन् 1970 की रिपोर्ट तथा अन्य कई वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार कौंणी में क्रूड फाइबर, वसा, फाइवर, कार्बोहाईड्रेड के अलावा कुछ अमीनो अम्ल होने की वजह से आज विश्वभर में कई खाद्य उद्योगों में इसकी मांग हो रही है। सुगर के मरीजों के लिये यह वरदान जैसा है। इससे तमाम बिमारियों में होने वाली थकान से मुक्ति मिलती है। तंजानिया में तो एड्स रोगियों के बेहतर स्वास्थ्य के लिये कौंणी से बनाये गये भोजन को परोसा जाता है।
श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय द्वारा किये गये एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि कौंणी के सेवन से यह खून में ग्लूकोज की मात्रा 70 प्रतिशत तक कम कर देता है। संभवतः इसीलिये पारम्परिक घरेलू नुस्खों में इसको तमाम व्याधियों में सेवन की बात की जाती है।
कौणी में 9 प्रतिशत तक तेल की मात्रा भी पाई जाती है। विश्व के बहुत से देश इसी वजह से कौंणी को तिलहन के तौर पर भी उपयोग करते हैं। जिसकी वजह से विश्व के कई देशो में कौंणी से तेल का उत्पादन भी किया जाता है।
कौणी की पौष्टिकता और औषधीय उपयोगिता की वजह से विश्वभर में बेकरी उद्योग की पहली पसंद बनता जा रहा है। कौंणी से तैयार किये ब्रेड में अन्य अनाजों से तैयार किये ब्रेड से प्रोटीन की मात्रा 11.49 की अपेक्षा 12.67, वसा 6.53 की अपेक्षाकृत कम 4.70 तथा कुल मिनरल्स 1.06 की अपेक्षाकृत अधिक 1.43 तक पाये जाते हैं।
संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन ने सन 2023 को मिलेट इयर मनाने की घोषणा की है। भारत सरकार के सुझाव पर यह कदम उठाया गया है। यूएन ने इसकी उपयोगिता, औषधीय गुणों और पौष्टिकता को देखते यह कदम उठाया है।
कितनी अजीब बात है कि पौष्टिकता और औषधीय गुणों के बावजूद कौंणी आज उत्तराखण्ड में विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुका है। विश्व और भारत के स्तर पर इसको लेकर किये जा रहे प्रयास कितने कारगर होंगे यह तो भविष्य के गर्भ में है।