हिमालय की लोकदेवी झालीमाली
hys_adm | August 16, 2020 | 0 | औखाणे , कला साहित्य , पहाड़ की बात , मेले-त्योहार
मध्य हिमालय में देवी भगवती/दुर्गा के नौ रूपों यथा शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघण्टा, कुशमाण्डा, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री के अतिरिक्त अन्य कई स्थानीय रूप हैं। इसमें नंदा, राजराजेश्वरी, चन्द्रबदनी, सुरकण्डा, भ्रामरी, मठियाणा, कुंजापुरी, धारीदेवी, ज्वालपा, भराड़ी, गढ़देवी, कंसमर्दिनी, पातालभुवनेश्वरी, अनुसूया, झूलादेवी, गढ़देवी, भद्रकाली, बाराही आदि हैं। लोक देवी झालीमाली इन्हीं में शामिल है।
झालीमाली का अर्थ है सुन्दर, सजी-धजी दिखने वाली देवी। झालीमाली शब्द झालमाल से बना है जिसका भाव है- अपने कुटुम्ब के साथ फला-फूला समाज। अतः झालीमाली संपूर्णता का प्रतीक है।
झालीमाली को अग्नि की देवी भी माना जाता है। संपूर्ण हिमालयी क्षेत्र में आदि नामों से ख्याति हुई। (डॉ- गोविन्द सिंह चातक-1990) यद्यपि कई जागर में ज्वाल्पा को झालीमाली की छोटी बहन बताया गया है। प्राचीन काल में झालीमाली की ज्योति को अन्य पवित्र स्थलों पर ले जाने की परम्परा थी। अग्नि की देवी झालीमाली का मूल स्थान फुंगर (चम्पावत) में माना जाता है।
प्राचीनकाल में वहां झालीमाली देवी को एक ज्योति के रूप में पूजा जाता था। वर्तमान समय में यद्यपि इस स्थान पर कई मूर्तियों का समूह है, जो कि विभिन्न स्थानीय देवी-देवताओं की हैं। ये सभी मूर्तियां विभिन्न समयों में फुंगर गांव के आस-पास हुई खुदाई से मिली हैं, जिसे बाद में झालीमाली मंदिर एवं आस-पाास के क्षेत्र स्थापित कर दिया गया है।
झालीमाली मातृदेवी है। यह भी मान्यता है कि झाली और माली दो बहिनें थी जो कि बाद में एकसार/एक त्तव होकर झालीमाली के नाम से विख्यात हुई। झालीमाली का आदि संबंध मां बाला त्रिपुरा सुंदरी से भी माना जाता है। (गांववासी-2012) झालीमाली को युद्ध की देवी भी माना जाता है। तिब्बत में हूणों की इष्टदेवी से भी झालीमाली को जोड़ा जाता है। हूण देश में झालीमाली को धन-धान्य की रक्षा करने वाली देवी माना गया है। झालीमाली के जागरों में हूणों की झालीमाली का जिक्र कई बार आता है। (डॉ- शिव प्रसाद नैथानी-2005) झालीमाली के मंदिर नेपाल देश में भी हैं।
उत्तराखण्ड में नंदा, भ्रमारी, बाराही, भीमा, बालासुन्दरी, शाकम्बरी का आदि रूप ही झालीमाली है। झालीमाली देवी के बारे में कहा जाता है कि वह अपने भक्तों को आने वाले अपशकुन/कष्टों के बारे में स्वप्न में आकर अगाह कर देती है, ताकि उसके भक्त सचेत हो जांय। रणूरौत, सदेई, भीमा कठैत, जियाराणी की गाथाओं में देवी ने इसी रूप में मदद की थी। इसीलिए मां झालीमाली को स्वप्न की देवी भी माना जाता है। सर्वगुण सम्पन्न वर की कामना के लिए अविवाहित युवतियों द्वारा झालीमाली को विशेष रूप में पूजने की प्रथा भी है। समवयस्क और सुन्दर पति प्राप्त करने के लिए किशोरियां ज्वालपा, ज्वाला, झालीमाली देवी की पूजा करती हैं। (गोविन्द चातक-1990)। सुयोग्य संतान की प्राप्ति के लिए भी झालीमाली, ज्वालपा, और ज्वाला का स्मरण विशेष फलदायी माना गया है। सामान्य रूप में झालीमाली को सौम्य एवं परिपूर्णता की देवी माना गया है। सामान्य रूप में झालीमाली को सौम्य एवं परिपूर्णता की देवी माना जाता है परन्तु तेजस्वी रूप में झालीमाली मां काली ही हैं। उदाहरण के लिए मुण्डनेश्वर (पौड़ी गढ़वाल) मंदिर परिसर में विराजमान मां काली की मूर्ति मूलतः झालीमाली है।
इतिहासविदों का मानना है कि उत्तराखण्ड के प्राचीन शासक सूर्यवंशी कत्यूरी कैंतुरा, काली कुमाऊं के महर एवं रौत राजाओं की कुलदेवी झालीमाली देवी ही थी, जिसे बाद में नंदा कहा जाने लगा। कोट भ्रमरी एवं बाराही देवी झालीमाली के ही विशिष्ट रूप हैं। देवी जागरों में यह उल्लेख मिलता है कि झालीमाली कत्यूरी राजा की रूपवान वीरांगना बेटी थी जो अद्भुत वीरता के कारण अपने ही (कत्यूरी वंश) कुल की देवी के रूप में स्थापित कर दी गयी। (गणेश खुगसाल गणी-2016)। उत्तराखण्ड में ममगाईं, कैन्तुरा, गुसाईं, खुगसाल, मधवाल, कुकरेती, चमोला, रतूड़ी, गुसाईं, नैनवाल, जोशी, रावत, प्याल, बौंठियाल, लड़ियाल, सती, महर आदि जातियों की किन्हीं क्षेत्र विशेष में कुलदेवी झालीमाली है।
झालीमाली के प्राचीन पांच देवस्थल यथा- प्रथम-चंपावत की फुंगर पहाड़ी पर फुंगर गांव हिडम्बा/हिंगलदेवी के निकट, द्धितीय- जोशीमठ में नरसिंह मंदिर परिसर, तृतीय गरुड़ बैजनाथ के पास रणचूलाकोट के निकट मेला डुंगर गांव है जिसका तोक गांव झालमाली है। प्राचीन समय में झालीमाली यहीं पर थी। जिसे बाद मे इसके ऊपरी चोटी रणचूलाकोट में प्रतिष्ठापित किया गया। चतुर्थ- पौड़ी के समीप कंडारा गांव और पंचम गौचर के निकट झालीमठ गांव में है।
वर्तमान समय में उक्त देवस्थलों के अलावा पौड़ी के खुगश, डंगी, नैल एवं धमैली (अस्वालस्यूं), नवन मल्ला (सितोनस्यूं), सिराला (सबदरखाल), कठूड (कोटद्वार), नाव (एकेश्वर), कंडी (रावतस्यूं), मज्याणीसैंण, घ्ीड़ी (रिखणीखाल), बैंग्वाड़ी (बारहजूला), मडाऊं (मौदांडास्यूं), बरसूड़ी एवं जसपुर (द्वारीखाल), मन्दोली (खिर्सू), काण्डई (पौड़ी), कुलासू, कठुली, डोबल (एकेश्वर), बादकोट (देवीखाल) चमोली जनपद के सणकोट (थराली), बेथरा (मध्य कड़ाकोट) एवं टिहरी जनपद में बांसकाटल (दोगी पट्टी) पौंसाड (हिण्डोलाखाल), बनगढ़़ जरौला (खासपट्टी), खोन देवप्रयाग में झालीमाली के मंदिर हैं।
डॉ. अरुण कुकसाल वरिष्ठ साहित्यकार और संस्कृतिकर्मी हैं। यह लेख कड़ाकोट दस्तावेज पुस्तक से प्रकाशकों की अनुमति से लिया गया है।