मनुष्य के साहस के सामने आपदाएं भी हारी.. - देश-दुनिया

मनुष्य के साहस के सामने आपदाएं भी हारी..

hys_adm | October 13, 2020 | 1 | दुनिया , देश , देश-दुनिया

कोविड-19 से विश्वभर में मौत का ताण्डव जारी है। एक समय तो ऐसा भी आया कि दुनिया के बहुत से देशों ने अपने आप को घरों में कैद कर लिया है। गाड़ी के पहिए से लेकर कारखानों की चिमनियों से उगलता धुंआ तक सबकुछ थम सा गया। यह एक-दो दिन नहीं, बल्कि कई महीने तक जारी रहा है। पूरे विश्व में संक्रमित रोगियों की तादात बढ़ने के साथ-साथ मरने वालों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। संक्रमण से उबरने के भी आंकड़े आ रहे हैं, लेकिन वे चिंता और भय को कम करने के लिए नाकाफी लग रहे हैं। शहरों से गांवों की ओर लौटेे प्रवासियों की व्यथा गमगीन करने वाली है। उपेक्षा, भय, हताशा और मौत की आशंका ने मानवीयता को तार-तार कर दिया है। हालांकि बहुत सी कहानियां मानवीयता को बचाने और बढ़ाने की भी आ रही हैं, लेकिन वे इतने बड़े जख्म के आगे बौनी साबित हो रही हैं, लेकिन क्या आपदाओं से सिर्फ तबाही होती हैं? मेरा इस पर गहरा यकीन है कि आपदाएं या महामारी से सिर्फ तबाही नहीं लाती, वो मौत के सैलाब के साथ-साथ लाती है मनुष्य में जिंदा रहने की जिजिविशा। इन तमाम खतरों से निपटने का साहस और उससे अहम कि हर आपदा के बाद वह इनको मात देने के नए-नए तरीकों को इजाद करने लगता है।

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आप दुनियाभर में महामारी या आपदाओं के इतिहास को खंगाल कर देख लीजिए। इन आपदाओं के गहरे शोक के बीच से ही मनुष्य ने नई राह के गीत रचे हैं। मनुष्य ने बार-बार इनसे अपने आपको और बेहतर करने में लगाया है। दुनिया में जब-जब ऐसी आपदाएं या महामारी आई, तब-तब वहां के नागर समाज ने अपने लिए सुरक्षा और रखरखाव के नए कीर्तिमान भी रचे हैं। तो क्या कोरोना के बाद भी ऐसा होगा। मेरा मानना है कि जरूर होगा, बस इसके लिए हमें हर स्तर पर सोचने की जरूरत है। यहां इन्हीं तरह के वैकल्पिक राहों को तैयार करने की ओर में इशारा करने की कोशिश है। आज पूरे देश में बड़ी आबादी शहरों से गांवों की ओर वापस आ गई है। ऐसे में इनके रोजगार की ओर ध्यान देने की जरूरत है। मानव संसाधन के तौर पर देखें तो विभिन्न क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों की वापसी हो रही है। इनकी योग्यताओं और हुनर का उपयोग गांव स्तर पर हो पाए, इसके लिए सोचने की जरूरत है। गांव स्तर पर कुटीर उद्योगों को लगाने और कच्चे माल के लिए सामुदायिक खेती और उद्यम को शुरू करने की जरूरत लगती है। इसके लिए गांव स्तर पर वन उपज को बढ़ाने के लिए वृक्षारोपण, नई तरीकों से खेती और अन्य के अवसरों को उपलब्ध कराने की जरूरत है।

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उत्तराखंंड में जहां छोटी-छोटी जोत और खेतों का बिखराव जैसा है, वहां सामुदायिक खेती और बाजार तक पहुंच के लिए नए तरीकों को करने की जरूरत लगती है। खेती-किसानी में लगे लोगों की मंंडी तक सामानों की त्वरित उपलब्धता के लिए जरूरी साधनों की उपलब्धता की ओर देखा जा सकता है। सरकारी अस्पतालों के पुनर्निर्माण की सख्त जरूरत महसूस हो रही है। हमारे अस्पतालों को जितना जल्दी हो सके मानव संसाधन और भौतिक संसाधनों से लेैैस करना होगा, जिनमें इन बीमारियों की जांच से लेकर उनके उपचार तक की पूरी सुविधा हो। इन अस्पतालों तक पहुंचने के लिए पर्याप्त वाहन और सड़कों से इनका जुड़ाव सुनिश्चित किया जाए। गांव स्तर पर ग्राम समाज को सामुदायिक और सरकार के सहयोग से बहुद्देश्यीय भवनों के निर्माण की जरूरत है। हालांकि कुछ गांवों में सामुदायिक भवन बने हैं, लेकिन वह नाकाफी लगते हैं। गांव में वहां की आबादी के हिसाब से ऐसे बहुद्देश्यीय भवनों का निर्माण किया जा सकता है, जिसमें महामारी या आपदा के समय लोग इसमें रह पाएं। इसमें आवास और भोजन की उपलब्धता को लेकर भी प्रयास करने की जरूरत लगती है। ये भवन भूकंपरोधी होने के साथ ही आधुनिक सुविधाओं से लैस होने चाहिए। यदि गांव स्तर पर ऐसे भवनों का निर्माण हो जाता है तो यह कठिन समय के अलावा सामान्य परिस्थितियों में भी उपयोगी साबित होंगे।

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वर्तमान में सूचना और तकनीकी ने जिस तरह अपने पांव पसारे हैं, उससे बहुत से काम आसान हुए हैं। हर गांवों में संचार के साधनों की उपलब्धता हो ऐसी कोशिश की जानी चाहिए। इंटरनेट से हर अस्पताल, किसान और लघु उद्यमों को करने वाले लोगों से जोड़ा जाय। ताकि इनके माध्यम से चिकित्सा, रोजगारोन्मुखी जनजागरूकता और सहायता त्वरित गति से उपलब्ध हो पाए। ग्राम स्तर से राज्य स्तर पर वापस आ रहे लोगों का डेटा बेस तैयार किया जा सकता है, जिससे यह पता लग पाए कि गांवों में किस तरह के मानव संसाधन की उपलब्धता, कच्चे माल की उपलब्धता या संभावना है। गांव में उपलब्ध मानव संसाधन का गांव में रहते हुए कैसे बेहतर उपयोग हो पाता है, इसके लिए शोध, योजना निर्माण और प्रबंधन के लिए तंत्र तैयार करने की जरूरत है। यदि इस तरह के प्रयास पूरी ईमानदारी के साथ होते हैं तो तय मानिए की कोरोना जैसी महामारी से उबरने के साथ ही हमारे गांवों की तस्वीर भी बदल जाएगी। इससे जहां एक ओर गांवों में खुशहाली लौटेगी वहीं शहरों पर भी जन दबाव कम होने से वहां भी जीने लायक वातावरण बन पाएगा।

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