जॉर्ज एवरेस्ट : मसूरी की सबसे मजेदार जगह
hys_adm | July 18, 2022 | 0 | घुम्मकड़ी , पर्यटक स्थल
जॉर्ज एवरेस्ट! पहाड़ों की रानी मसूरी की भीड़-भाड़, चिल्लपौ से दूर एक ऐसी शानदार टूरिस्ट डेस्टिनेशन, जहां प्राकृतिक सुंदरता आपका दिल जीत लेगी। आप खुद को आसमान छूती ऊंचाई पर पाएंगे और धरती पर स्वर्ग का अहसास करेंगे। तैरते बादल और पहाड़ की खूबसूरती देखकर ऐसा सुकून मिलेगा कि आप तारीफ किए बगैर नहीं रह पाएंगे। यह जगह जितनी खूबसूरत और एडवेंचर से भरपूर है, उतना ही दिलचस्प है इसका ऐतिहासिक महत्व।
देहरादून से जब आप राजपुर रोड होकर मसूरी के पहाड़ी रास्ते से गुजरते हैं तो यह भी कम मनमोहक नहीं होता। मसूरी से ठीक पांच किलोमीटर पहले जॉर्ज एवरेस्ट के लिए सड़क जाती है। इसके अलावा दूसरा रास्ता मसूरी से भी जाता है। हाथीपांव होते हुए अपने वाहन से जॉर्ज हाउस तक पहुंचा जा सकता है। ठंडी हवा के झोंके आपको ऐसा एहसास कराते हैं, जैसे प्रकृति आपका स्वागत कर रही है।
जब जॉर्ज एवरेस्ट हाउस का जिक्र करते हैं तो मन में ख्याल आता है, दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट का। इसलिए जानते हैं इसके ऐतिहासिक महत्व को। सर जॉर्ज एवरेस्ट वह शख्स थे, जिन्होंने पहली बार दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट की सही ऊंचाई और लोकेशन पता लगाई थी। सर जार्ज ने जीवन का एक लंबा अरसा मसूरी में गुजारा था। मसूरी स्थित सर जॉर्ज एवरेस्ट के घर और प्रयोगशाला में ही वर्ष 1832 से 1843 के बीच भारत की कई ऊंची चोटियों की खोज हुई और उन्हें मानचित्र पर उकेरा गया। जॉर्ज वर्ष 1830 से 1843 तक भारत के सर्वेयर जनरल रहे। सर जॉर्ज एवरेस्ट ने जीवन का एक लंबा अरसा मसूरी में गुजारा। हाथीपांव के समीप 172 एकड़ जमीन सर जॉर्ज एवरेस्ट हाउस स्थित है, यहां करीब एक किमी ऊपर पहाड़ की चोटी है, जिसे जॉर्ज एवरेस्ट पीक के नाम से जाना जाता है। वहीं विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को वर्ष 1865 में अंग्रेजों ने सर जॉज एवरेस्ट का दिया था। इससे पहले इस चोटी को पीक-15 नाम से जाना जाता था, जो अब जार्ज एवरेस्ट के नाम से मशहूर है। इधर मसूरी में जहां जॉर्ज एवरेस्ट रहते थे, उस हाउस का नजारा भी सुंदर है। हाल ही में उत्तराखंड पर्यटन विभाग ने एशियन डेवलपमेंट बैंक की वित्तीय सहायता से खंडहर हो चुके सर जार्ज एवरेस्ट हाउस को जीर्णोद्धार किया है। इस पर लगभग 23.69 करोड़ की राशि खर्च की गई। जिसके बाद यहां सुविधाएं भी बढ़ी हैं। जल्द जॉर्ज हाउस में म्यूजियम भी तैयार किया जा रहा है, जिसका आनंद पर्यटक आने वाले दिनों में उठा सकेंगे।
पीक पर पहुंचने के लिए करीब एक किलोमीटर की पैदल दूरी तय करनी पड़ती है। यह रास्ता एडवेंचर से भरपूर है। हालांकि कहीं-कहीं पर बहुत संभल कर चलने की जरूरत है। जॉर्ज एवरेस्ट बहुत सुंदर चोटी है। सूर्य उदय और सूर्या अस्त का नजारा देखने लायक होता है। चोटी पर पहुंचते ही ऐसा लगता है। मानो आसमान के करीब पहुंच गए हों। ये ठीक सामने जॉर्ज एवरेस्ट हाउस नजर आ रहा है। आप चाहें तो यहां सुकून के पल बिताकर मसूरी या देहरादून लौट सकते हैं, अन्यथा यहां भी टैंट में रहने का विकल्प है। इस जगह पर आने को शाम पांच बजे बाद का वक्त चुनें तो ज्यादा आनंद उठा पाएंगे। रात बिताकर सुबह सूर्य उदय का नजारा देख सकते हैं। जॉर्ज एवरेस्ट देश में सबसे शानदार सूर्योदय दृश्य के लिए भी मशहूर है। अगर आप कई अद्भुत दृश्य का गवाह बनना चाहते हैं यह जगह आपके लिए खास है।
सर जॉर्ज एवरेस्ट के पास ही विश्व की सबसे डरावनी जगहों में से एक लंबिधार माइंस स्थित है, जहां पहले लाइमस्टोन और मार्बल निकाला जाता था। जॉर्ज एवरेस्ट पर पहुंचने के लिए हाथीपांव से पैदल मार्ग है और लंबिधार माइन्स से भी पैदल सफर है, लेकिन यहां से सफर काफी खतरनाक है। लंबिधार माइन्स से गुजरते हुए नया ही रोमांच पैदा होता है। इस जगह पर आप जंगल ट्रैकिंग, कैंपिंग और बोन फायर का लुफ्त उठा सकते हैं। इस जगह से सनसेट और सनराइज का अद्भुत नजारा दिखाई देता है। जॉर्ज एवरेस्ट के घर के पास ही एक चोटी है, जिसे जॉर्ज एवरेस्ट कहा जाता है। इस स्थान पर तिब्बती भाषा में रंग बिरंगे कपड़ो पर मंत्रों को लिखा गया है, जो हवा में लहराते रहते है। जॉर्ज एवरेस्ट हाउस ऐसे स्थान पर है, जहां से दूनघाटी, अगलाड़ घाटी और बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियों का मनोहारी नजारा दिखाई देता है।