
वैज्ञानिकों ने खोले जोशीमठ के ‘राज’
hys_adm | November 1, 2023 | 1 | कैटेगरी , पर्यावरण
जोशीमठ पर देश के आठ प्रमुख वैज्ञानिक संस्थानों ने अपनी रिपोर्ट्स में कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। क्या इस शहर का अस्तित्व सच में खत्म होने वाला या यहां फिर से जिंदगियां आबाद होने वाली हैं… वैज्ञानिकों ने इन सभी सवालों के जवाब दे दिए हैं। चिंताओं के बीच समाधान का रास्ता भी सुझाया है। वैज्ञानिकों का यह अध्ययन भले ही एक पर्वतीय शहर पर केंद्रित क्यों न हो, परंतु इसने हिमाचल और उत्तराखंड के पर्वतीय शहरों के अस्तित्व पर गहराते संकट से जुड़े सवालों के जवाब देने की भी कोशिश की है।
उत्तराखंड का ऐतिहासिक, धार्मिक और सामरिक महत्व का शहर जोशीमठ! एक जाना-पहचाना नाम। जनवरी और फरवरी 2023 में काफी चर्चाओं में रहा। चमोली जिले के जोशीमठ में भू-धंसाव वैसे तो काफी समय से हो रहा था, लेकिन जनवरी में यह काफी बढ़ गया। भू-धंसाव के कारण सैकड़ों भवनों में भयंकर दरार आ गईं। जोशीमठ की जड़ में जेपी कॉलोनी जमीन के भीतर से पानी का पव्वारा फूट पड़ा था।
उस दौरान देशभर की मीडिया का जमावड़ा यहां लगा था। भू-धंसाव से बेहाल इस शहर को लेकर कुछ दिन मीडिया में खूब तमाशा चला। कुछ मामलों में इन सब हरकतों की आलोचना भी हुई, लेकिन इस मीडिया कवरेज की वजह से तब सरकार का विशेष ध्यान जोशीमठ पर गया। हालांकि कुछ दिन बाद जोशीमठ की जनता को अपने हाल पर छोड़कर सब खामोश हो गए। तकरीबन आठ-नौ महीनों के दरमियान जोशीमठ की मुश्किलों का दौर थमा नहीं। जमीन धंसने के कारण किसी ने अपना घर गंवाया तो किसी ने होटल और दुकान। किसी को अपने रोजगार से हाथ धोना पड़ा तो किसी को अपनों की खातिर शहर छोड़कर जाना पड़ा। दरारे वाले घरों को छोड़कर महीनों लोगों को कैंप में रहने को मजबूर होना पड़ा। इस बीच उत्तराखंड सरकार ने वैज्ञानिक संस्थानों को जोशीमठ को लेकर रिपोर्ट तैयार करने को कहा, ताकि इस शहर के विस्थापन या ट्रीटमेंट की दिशा में काम हो सके। साथ ही यह तस्वीर भी साफ हो जाए कि इस शहर के धंसने की असली वजह क्या है।
इस दरमियान मानसून सीजन में हिमाचल के कई शहरों में भूस्खलन की बड़ी घटनाओं ने लोगों के होश उड़ा दिए। उत्तराखंड में ही नैनीताल, कर्णप्रयाग समेत कुछ और शहरों में भी भूस्खलन और भूधंसाव की घटनाओं ने पर्वतीय शहरों के अस्तित्व को लेकर उपजी चिंताओं के दायरे को बढ़ा दिया। …और फिर से पहाड़ के आबादी वाले इलाके चर्चा में आ गए।
तमाम वैज्ञानिक संस्थानों से बहुत पहले ही अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी, लेकिन यह सार्वजनिक नहीं हुई। इस मामले में अल्मोड़ा निवासी पीसी तिवारी ने याचिका दायर कर रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की मांग की थी। नैनीताल हाईकोर्ट के आदेश पर उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की ओर से 25 सितंबर 2023 को इन रिपोर्ट्स को सार्वजनिक करते हुए वेबसाइट पर अपलोड किया गया। इन वैज्ञानिक रिपोर्ट का विश्लेषण स्थानीय समाचार पत्रों में हाल के दिनों में प्रकाशित हुआ है।

जोशीमठ पर अध्ययन करने वाले आठ संस्थान
- 01 : वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान, देहरादून
- 02 : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रुड़की (आईआईटी रुड़की)
- 03 : राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद
- 04 : राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रुड़की (एनआईएच रुड़की)
- 05 : भारतीय भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई)
- 06 : केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी)
- 07 : भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान (आईआईआरएस), देहरादून
- 08 : केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआई) रुड़की
चलिए, अब विस्तार से समझते हैं–
01 : जोशीमठ पर वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान की रिपोर्ट
देहरादून स्थित Wadia Institute of Himalayan Geology के वैज्ञानिकों की रिपोर्ट इसलिए भी अहम है, क्योंकि यह संस्थान हिमालय को बहुत करीब से समझता है। संस्थान के वैज्ञानिकों न सिर्फ जोशीमठ पर अध्ययन किया, बल्कि भविष्य के लिए खतरों को कम करने की दिशा में भी अहम काम किया है।
वाडिया संस्थान ने जोशीमठ में किए वैज्ञानिक अध्ययनों में पाया कि मनोहरबाग इलाके में नया भूस्खलन जोन विकसित हो गया है। यह जोन पांच से 30 मीटर तक गहरा है। पानी की निकासी सही नहीं होने से यहां समस्या बढ़ सकती है। यहां बनाना होगा कि मनोहरबाग जोशीमठ का ऊपरी इलाका है। यहीं से भूधंसाव की शुरुआत हुई थी। शोध से पता चलता है कि जोशीमठ में अत्याधिक ढलान दशकों से सक्रिय भूस्खलन जोन को सक्रिय रखे हुए है। इसमें पानी की निकासी प्रभावित होने और मिट्टी के अत्याधिक नरम होने के कारण भूधंसाव को बढ़ावा मिल रहा है।
वैज्ञानिकों ने पहली बार लिडार तकनीक से जोशीमठ का उच्च क्षमता का टोपोग्राफिक मानचित्र तैयार किया है। इसमें भूस्खलन प्रभावित जोन अलग से चिह्नित किए गए हैं। इससे जोशीमठ की टाउन प्लानिंग में एजेंसियों को भविष्य में मदद मिलेगी। शोध से शहर में नाला निकासी का मार्ग क्या हो, सीवर लाइन, एलीवेशन डेटा से स्लोप की सही रास्ते का पता चलेगा। वाडिया ने शहर के अलग-अलग हिस्सों में सीवर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने की सिफारिश की है।
भूकंप की दृष्टि से जोशीमठ क्षेत्र अति संवेदनशील श्रेणी में है। क्या! जोशीमठ में आई दरारों के लिए भूकंप भी जिम्मेदार हैं, इस सवाल के जवाब भी तलाशे जा रहे हैं। वाडिया संस्थान ने जोशीमठ में भूकंपीय हलचल की निगरानी के लिए 11 सेस्मिक स्टेशन स्थापित किए हैं। इसमें नौ शहर के भीतर ही बनाए गए हैं। इन स्टेशन से रियल टाइम डेटा मिल रहा। इससे जोशीमठ क्षेत्र में आपदा प्रबंधन के कार्यों में मदद मिलेगी। जमीन के भीतर की हलचल पर भी बारीक नजर रखी जा रही है। इस दौरान इन स्टेशनों से वाडिया के वैज्ञानिकों ने माइक्रो भूंकप के झटके तक भी दर्ज किए हैं। वैज्ञानिक इसकी निगरानी कर रहे हैं कि भूकंप का असर किस हद तक जोशीमठ पर पड़ रहा है।

02- जोशीमठ पर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की की रिपोर्ट
Indian Institute Of Technology Roorkee (IIT Roorkee) ने अपनी रिपोर्ट में जोशीमठ के 50 प्रतिशत हिस्से को संवेदनशील करार दिया है। आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों ने 12 स्थानों पर जमीन की क्षमता का परीक्षण किया। इसमें नृसिंह मंदिर के पास लोअर बाजार क्षेत्र, सिंहधार पार्किंग लाट, मनोहरबाग में रोपवे का टावर नंबर एक, लोनिवि गेस्ट हाउस के पास और परसारी में एटी नाला के पास की जमीन क्षमता से कमजोर पाई गई है। पीडब्ल्यूडी गेस्ट हाउस के पास की जमीन सबसे कमजोर पाई गई। दूसरी तरफ राजकीय महाविद्यालय, जेपी कॉलोनी गेट, सिंहधार में पंचवटी के पास, नगर पालिका के पास, सुनील में शिवालिक कॉटेज के पास भूमि की क्षमता ठीक मिली है।
आईआईटी रुड़की के वैज्ञानिकों ने जमीन की भार वहन करने की क्षमता और अन्य मानकों पर रिस्क जोन तय किए हैं। जमीन भार वहन क्षमता मतलब (Bearing Capacity) आसान शब्दों में कहें तो जमीन पर कितने भार तक का निर्माण हो सकता है या वह जमीन कितना भार झेलने में सक्षम है। कुछ इस तरह से आप इसे समझिए कि अगर किसी कम भार झेलने वाली चीज पर अधिक भार रख दिया जाए तो निश्चित वह चीज दबने लगेगी। वही फार्मूला यहां भी बैठता है।
भार वहन करने की क्षमता के मानक के हिसाब से आठ टन प्रति वर्गमीटर से कम की क्षमता वाली जमीन को हाई रिस्क जोन में रखा गया है, जबकि 12 टन प्रति वर्गमीटर से अधिक क्षमता वाले क्षेत्र को कम रिस्क वाला जोन माना गया है। आईआईटी रुड़की की अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक, जोशीमठ का सबसे कमजोर हिस्सा लोनिवि गेस्ट हाउस के पास है, जहां जमीन की भार वाहन करने की अधिकतम क्षमता महज 8.5 टन प्रति वर्गमीटर है। जबकि, सबसे अधिक भार वाहन करने की क्षमता अपर बाजार नगर पालिका क्षेत्र में 44 टन प्रति वर्गमीटर पाई गई है।
आईआईटी की जांच में यह बात सामने आई कि जोशीमठ की मिट्टी मुख्य रूप से बोल्डर के साथ बजरी- रेत वाली है। कुछ नमूनों में प्राकृतिक नमी की मात्रा 3 से 25 प्रतिशत के बीच पाई गई। जोशीमठ की मिट्टी का ढांचा बोल्डर, बजरी और मिट्टी का एक जटिल मिश्रण है। ऐसी मिट्टी में आंतरिक कटाव पूरे ढांचे की अस्थिरता का कारण बनता है। धंसाव का मुख्य कारण बारिश के पानी के भूमि के भीतर रिसाव, बर्फ के पिघलने, घरों और होटलों से निकलने वाला पानी होना बताया गया है।
03: राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान हैदराबाद की रिपोर्ट
National Geophysical Research Institute (NGRI) ने भी जोशीमठ क्षेत्र की जमीन की क्षमता का परीक्षण किया। इसमें करीब 30 प्रतिशत भूभाग को उच्च जोखिम वाला बताया गया है। जमीन के भीतर भी भूधंसाव का प्रभाव पाया गया। रिपोर्ट में जोशीमठ के एक बड़े भूभाग को 20 से 30 मीटर तक की गहराई में उच्च जोखिम वाले जोन में दर्शाया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तरमुखी जोशीमठ में ढाल और बोल्डर एक ही दिशा में झुक रहे हैं और इसी के अनुरूप धंस रहे हैं। अध्ययन में बताया है कि 22 दिसंबर 2022 से 23 जनवरी 2023 के बीच यह पूरा क्षेत्र छह सेंटीमीटर से अधिक खिसका है। जमीन पर इसका असर कुछ जगह एक मीटर तक दिखा है। भूगर्भीय हलचल का असर प्राकृतिक स्रोतों पर भी पड़ा है। या तो जलधाराएं गायब हो गईं या फिर अपना रुख बदल लिया। रिपोर्ट के मुताबिक, जोशीमठ में भूधंसाव की जो स्थिति सतह के ऊपर नजर आ रही है, वह जमीन के भीतर भी पाई गई है।

04: भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने साफ की दरारों पर तस्वीर
Geological Survey of India (GSI) ने जांच रिपोर्ट में श्री नृसिंह मंदिर को लेकर दिलचस्प खुलासा किया है। संसथान ने जोशीमठ में भूधंसाव की स्थिति के इतिहास और वर्तमान दोनों ही परिस्थितियों पर विस्तृत अध्ययन किया है। वैज्ञानिकों को जोशीमठ में कुल 81 स्थानों पर दरारों मिलीं, जिनमें 42 दरारें नई थीं। नई दरारों का अभिप्राय दिसंबर और जनवरी के दौरान हुए घटनाक्रम से है। 42 दरारों में से अधिकांश सुनील गांव, मनोहर बाग सिंहधार और मारवाड़ी क्षेत्र में मिलीं। हालांकि, रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि दरारों की स्थिति फिल्हाल स्थिर है।
जीएसआई ने भी बताया कि जोशीमठ का भूभाग पुरातन भूस्खलन के ढेर पर बसा है। इसमें ढीले मलबे के साथ विशाल बोल्डर भी हैं। ये बोल्डर ढालदार क्षेत्र में ढीले मलबे में धंसे हैं। दूसरी तरफ यहां समय के साथ शहरीकरण का बेतरतीब भार पड़ा है, जिसके चलते भूधंसाव की जो प्रवृत्ति कई दशक से धीरे-धीरे चल रही थी, उसमें तेजी आ गई है। जीएसआई की रिपोर्ट के अनुसार, जोशीमठ का अधिकांश भूभाग ढालदार है। यहां 11 प्रतिशत भूभाग 45 डिग्री से अधिक ढाल वाला है, जबकि आठ प्रतिशत भूभाग 40 से 45 डिग्री ढाल वाला है। अधिक ढाल वाले क्षेत्रों में भारी निर्माण से खतरा बना रहेगा। वैज्ञानिकों ने कहा कि जोशीमठ भूकंप के अति संवेदनशील जोन पांच में आता है। यहां सात मैग्नीट्यूड से अधिक क्षमता के भूकंप का खतरा हमेशा बना हुआ है। भूकंप जैसी घटनाएं भी खतरनाक साबित हो सकती हैं।
जीएसआई के विज्ञानियों ने एक और दिलचस्प खुलासा किया कि भूधंसाव कि हालिया घटना का असर श्री नृसिंह मंदिर परिसर में नहीं पाया गया है। वैज्ञानकों ने ये माना कि मंदिर के निचले भूभाग पर एक पुराना निशान जरूर देखने को मिलता है, लेकिन वह स्थिर है। बाहरी क्षेत्र की तरफ सीढ़ियों और दीवारों पर जो दरारें दिखाई देती हैं, वह भी काफी पुरानी हैं। यही कारण है कि मंदिर से सटे क्षेत्रों में लोग ज्यादा प्रभावित नहीं हुए हैं।
05- केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (सीबीआरआई) रुड़की की रिपोर्ट भी अहम
Central Building Research Institute (CBRI) ने जोशीमठ में 2364 इमारतों का बारीकी से अध्ययन किया, जिसमें से सिर्फ 37 प्रतिशत भवनों को रहने योग्य बताया। 42 प्रतिशत भवनों का दोबारा परीक्षण कराने की सलाह दी। 20 प्रतिशत भवनों को असुरक्षित बताया और एक प्रतिशत भवनों को ध्वस्त करने की संस्तुति की है। संस्थान के वैज्ञानिकों ने पाया है कि जोशीमठ में भवनों के निर्माण में मानकों का पालन नहीं किया गया है। जोशीमठ में नेशनल बिल्डिंग कोड-2016 के नियम भी नजरअंदाज किए गए। जबकि ढालदार क्षेत्र में भवन निर्माण में मानकों की अनदेखी खतरनाक साबित होती है। वैज्ञानियों के मुताबिक, ढालदार क्षेत्रों में भवन निर्माण में अधिक सावधानी बरतने की जरूरत होती है। हालांकि, अब तक की स्थिति में ऐसी सावधानी नहीं पाई गई। रिपोर्ट के मुताबिक 31 प्रतिशत भवन 30 डिग्री से अधिक ढाल पर पाए गए हैं।
सीबीआरआई ने जोशीमठ समेत अन्य पर्वतीय क्षेत्रों के लिए भवन निर्माण के लिए विभिन्न अध्ययन और मानक बनाने का सुझाव दिया है। अपनी रिपोर्ट में सुझाव दिया कि भवन निर्माण की प्रक्रिया को नियंत्रित किया जाए और निगरानी तंत्र विकसित किया जाए। भू-उपयोग तय किया जाए और उसके मुताबिक निर्माण की अनुमति दी जाए। जोशीमठ समेत अन्य क्षेत्रों के लिए वैकल्पिक मार्ग बनाए जाएं, ताकि राहत एवं बचाव कार्यों में मदद मिल सके। संवेदनशील क्षेत्रों में अर्ली वार्निंग सिस्टम की व्यवस्था की जाए।
06: भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान की जोशीमठ पर रिपोर्ट
इसरो से संबंध INDIAN INSTITUTE OF REMOTE SENSING (IIRS) ने अपनी रिपोर्ट में जोशीमठ में भूधंसाव की स्थिति न सिर्फ स्पष्ट की है, बल्कि यह भी बताया कि भूमि एक तरफ खिसक रही है। देहरादून स्थित आईआईआरएस के वैज्ञानिकों ने जून 2019 से लेकर मार्च 2023 तक अलग-अलग समय अंतराल में सेटेलाइट से अध्ययन किया। संस्थान की रिपोर्ट जमीन के खिसकने की तरफ इशारा करती है। इसका मतलब यह हुआ कि आपदाग्रस्त जोशीमठ का एक बड़ा भूभाग असामान्य गति से खिसका है। जमीन खिसकने की यह रफ्तार दिसंबर 2022 से जनवरी 2023 के बीच सर्वाधिक रही और इस दौरान यह दर 9.5 मिलीमीटर प्रतिदिन पाई गई। वैज्ञानिकों ने सेटेलाइट के साथ ही धरातलीय अध्ययन भी किया। इसके लिए सर्वे आफ इंडिया के जोशीमठ स्थित कोर्स स्टेशन की मदद ली गई। ताकि छोटे-छोटे अंतराल में जमीन में आ रहे बदलाव को रिकार्ड किया जा सके और उसे सेटेलाइट के आंकड़ों से मिलाया जाए। इसके माध्यम से स्पष्ट किया गया कि जमीन खिसकने की जो दर दिसंबर 2022 से जनवरी 2023 के बीच सर्वाधिक रही, उसमें 20 जनवरी के बाद से मार्च 2023 तक कमी आने लगी थी, जिससे भूधंसाव की घटनाओं में कमी आई। इससे जोशीमठ में पैदा हुई पैनिक सिचुएशन कुछ कम हुई।
07: केंद्रीय भूजल बोर्ड की रिपोर्ट भी अहम
Central Ground Water Board (CGWB) की रिपोर्ट के मुताबिक, जोशीमठ में भूधंसाव की घटना के साथ क्षेत्र में तमाम जलस्रोतों के प्रवाह में भी असमान्य बदलाव देखने को मिला है। वैज्ञानिकों के अनुसार, प्राकृतिक जलस्रोतों के आसपास बेतरतीब निर्माण से न सिर्फ इनके अस्तित्व पर खतरा बढ़ा है, बल्कि जमीन के भीतर इनके मार्ग बदलने से भूधंसाव में बढ़ोतरी भी देखने को मिली है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, सिंहधार क्षेत्र में भूजल स्तर में 20 से 60 सेंटीमीटर प्रतिदिन के हिसाब से कमी दर्ज की गई। इस कमी के पीछे सीधे तौर पर भूधंसाव को कारण माना गया। माना गया है कि जलस्रोतों के इर्द-गिर्द पक्के निर्माण के चलते इनका प्रवाह असामान्य स्थिति में आना शुरू हो गया है। इस स्थिति को भी विज्ञानियों ने भूधंसाव से जोड़कर देखा है। साथ ही ऐतिहासिक भूकंपीय फाल्ट लाइन मेन सेंट्रल थ्रस्ट के क्षेत्र में आने के चलते भूकंपीय घटनाओं को भी एक वजह माना है। वैज्ञानिकों ने रिपोर्ट में संस्तुति की कि जलस्रोतों के इर्द-गिर्द किसी भी तरह के निर्माण की अनुमति न दी जाए। जल स्रोतों के इर्द-गिर्द जो भी पक्के निर्माण हैं, उन्हें हटा दिया जाए। विभिन्न स्थानों पर रिटेंशन दीवार के साथ खाई बनाई जाए, इससे भूजल पर दबाव को नियंत्रित किया जा सकेगा और जमीन पर दरार उभरने की दर में भी कमी आएगी।

08: जोशीमठ पर राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान की रिपोर्ट
National Institute of Hydrology (NIH) रुड़की की रिपोर्ट भी इस कड़ी में काफी अहम है। दरअसल, जब जनवरी 2023 के पहले सप्ताह में जोशीमठ के बड़े हिस्से में भूधंसाव हुआ तो उसी दौरान जेपी कॉलोनी के बैडमिंटन कोर्ट के पास पानी का तेज बहाव होने लगा। जोशीमठ की जड़ पर स्थित जेपी कॉलोनी में फूटे जलस्रोत ने सबको चौंका दिया था। इस स्रोत से एक जनवरी से एक फरवरी के बीच करीब एक करोड़ छह लाख लीटर मटमैला पानी निकला।
इसकी राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों ने जांच की। जेपी कॉलोनी के झरने के डिस्चार्ज डाटा को वैज्ञानिकों ने मापा था, जो छह जनवरी 2023 को 540 एलपीएम यानी लीटर प्रति मिनट था। करीब एक माह बाद दो फरवरी को यह घटकर 17 एलपीएम हो गया। वैज्ञानिकों ने अक्तूबर 2021 से जनवरी 2023 के बीच प्रवाहित पानी का आकलन किया तो पाया कि इसकी मात्रा जोशीमठ में आपदा के दौरान जमीन से फूटकर बाहर निकले पानी के ही बराबर थी।
एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया कि एनआईएच के वैज्ञानकों ने जोशीमठ की आपदा का कनेक्शन अक्तूबर 2021 में आई विनाशकारी बाढ़ से जोड़ा है। बताया गया कि जोशीमठ में पहाड़ के धंसने के पीछे का कारण अक्तूबर 2021 में आई भारी बारिश और विनाशकारी बाढ़ के बाद जमीन के भीतर जमा 10.66 मिलीयन लीटर पानी था। इस वजह से हाइड्रोस्टेटिक दबाव बना, जो जनवरी 2023 में फूट पड़ा। इससे भीतर से पहाड़ में खोखलापन पैदा हुआ धंसने के साथ ही भवनों में कई मीटर चौड़ी दरारें दिखाई देने लगी। जोशीमठ आपदा के दौरान भौतिक सर्वे किया तो वैज्ञानिकों ने पाया कि नीचे नदी में जाने के लिए पानी के लिए रास्ता साफ बना दिख रहा था, लेकिन उसमें पानी नहीं बह रहा। जोशीमठ के पश्चिम क्षेत्र में बारिश या बर्फ पिघलने के लिए पानी के प्रवाह के चैनल नदी तक बने होने चाहिए, जो गायब थे।
वैज्ञानिकों को यह संकेत मिला कि पानी तीव्र ढलानों के चलते कहीं बीच रास्ते में पहाड़ी के भीतर जा रहा है। पानी के सिग्नेचर जांचने के लिए नमूने लिए गए तो वैज्ञानिकों की आशंका सही साबित हुई। इस दौरान पाया गया कि क्षेत्र में जिस जगह पर 16 झरने चिह्नित किए गए, वहीं पर अधिकांश भूधंसाव हुआ है। जोशीमठ में जनवरी 2023 की आपदा के कुछ माह बाद भी एक घर की दीवार पर कान लगाकर सुनने पर पानी के बहने आवाज आ रही थी। जिस पर एनआईएच के वैज्ञानिकों ने जांच की। जिसमें पाया कि सड़क पर दरार में पानी के बहने के चलते आवाज आ रही थी, जिसे बंद करने के बाद दीवार में से पानी के बहने की आवाज बंद हो गई। सर्वे के दौरान जोशीमठ में झरनों, नालों, नदियों और भूजल से जुड़े 37 नमूने एकत्र किए गए। रिपोर्ट के अनुसार पानी शुद्ध पाया गया।
जलविद्युत परियोजना की टनल को क्लीन चिट
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) और राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (एनआईएच) ने जोशीमठ में अध्ययन के बाद अपनी रिपोर्ट में चमोली जिले में जोशीमठ के निकट अलकनंदा नदी पर एनटीपीसी की 520 मेगावाट विष्णुगाड़ जल विद्युत परियोजना को क्लीन चिट दी है। भूधंसाव के बाद पांच जनवरी 2023 को स्थानीय निवासियों के विरोध के बाद राज्य सरकार ने एनटीपीसी परियोजना स्थल पर सभी काम रोक दिए थे। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जोशीमठ में जेपी कॉलोनी में पानी के तेज बहाव का परियोजना से कोई संबंध नहीं है। एनटीपीसी की साइट से लिए गए पानी के नमूने जेपी कॉलोनी में निकलने वाले पानी के नमूनों से मेल नहीं खाते हैं। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के वैज्ञानियों ने भी परियोजना की टनल से भूधंसाव के सीधे संबंध को नकारा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि टनल से जोशीमठ के प्रभावित क्षेत्र की दूरी को देखते हुए भी इसको समझना मुश्किल है।

निष्कर्ष
वैज्ञानिक संस्थानों की इन रिपोर्ट में मोरेन क्षेत्र यानी ग्लेशियर की ओर से लाई गई मिट्टी में बसे जोशीमठ की जमीन के भीतर पानी के रिसाव के कारण चट्टानों के खिसकने की बात सामने आई है। इसे भूधंसाव की अहम वजह माना गया है। जोशीमठ हिमालयी इलाके में जिस ऊंचाई पर बसा है, उसे पैरा ग्लेशियल जोन कहा जाता है। इसका मतलब है कि इन जगहों पर कभी ग्लेशियर थे, लेकिन बाद में ग्लेशियर पिघल गए और उनका मलबा बाकी रह गया। इससे बना पहाड़ मोरेन कहलाता है। इसी मोरेन के ऊपर जोशीमठ बसा है। वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान की रिपोर्ट में प्रमुखता से जिक्र किया गया है कि जोशीमठ की मिट्टी का ढांचा बोल्डर, बजरी और मिट्टी का एक जटिल मिश्रण है। यहां बोल्डर भी ग्लेशियर से लाई गई बजरी और मिट्टी से बने हैं, इनमें ज्वाइंट प्लेन हैं, जो इनके खिसकने का एक बड़ा कारण हैं। इन रिपोर्ट का कुल मिलाकर सार यह है कि जोशीमठ की स्थिति संवेदनशील है। इसके साथ ही इन अध्ययन रिपोर्ट में भविष्य के निर्माण की प्रकृति को लेकर भी आगाह किया गया है। जिसका मतलब यह है कि अब जोशीमठ क्षेत्र में जो भी निर्माण किए जाएं, उनके लिए स्पष्ट मानक बनें और उनका पालन भी कराया जाए।