
पहाड़ की बेटी चारू का अनोखा हिमालयन कैफे
hys_adm | October 18, 2020 | 0 | पहाड़ की बात
आप कैफे में आर्डर करते हैं और साथ में संगीत की कोई धुन में बजाने लग जाते हो, या आप चित्रकारी शुरू कर देते हैं। जब तक आपका आर्डर आता है, तब तक आप किसी दीवार, बैंच, डेबल या किसी चीज को रंगने का काम पूरा कर लेते हैं। या किसी नई धुन को तैयार कर लेते हैं। तो फिर स्वाद लेते हैं कुमाउंनी तड़के के साथ बने व्यंजनों और कॉफी का।

भले ही आपको यह कल्पना लगे, लेकिन ऐसा ही एक कैफे चलाती हैं उत्तराखण्ड की बेटी चारू मेहरा Charu Mehra । जिसका नाम है दि हिमालयन हिप्पीज कैफे The Himalayan Hippies Cafe । आपने अल्मोड़ा की विश्व प्रसिद्ध जगह कसारदेवी का नाम तो सुना होगा जो अल्मोड़ा से सिर्फ 6 किलोमीटर की दूरी पर ही है।

दुनियाभर के साहित्यकारों, संगीतकारों और यात्रियों के आकर्षण के केन्द्र है कसारदेवी। पहली बार 1960 के दौर में हिप्पी आंदोलन के चलते यह चर्चाओं में आया था। इस जगह देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ ही विश्व प्रसिद्ध संगीतकार बॉब डिलन और कैट स्टीवंस, साहित्यकार डी. एच. लॉरेंस, कवि एलेन्स गिन्सवर्ग, हॉलीवुड अदाकारा उमा थर्मन जैसी हस्तियां आईं हैं। आज भी यहां बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक आकर महीनों तक रहते हैं। यह क्षेत्र कला-साहित्य और आध्यात्म के लिए काफी प्रसिद्ध है।

कसारदेवी में ही चारू मेहरा ने हिमालयन हिप्पी कैफे खोला है। हालांकि यहां की सजावट और चीजों को देखकर यह कैफे कम कोई संगीत और कला का केंद्र ज्यादा लगता है। इसके बारे में चारू बताती हैं, मैंने अपने दादाजी बिशन सिंह मेहरा से सीखा है कि चीजों पर मालिकाना हक जताने के बजाय यदि उसको आप सभी की सहभागिता के लिए खोलते हैं तो वह बहुरंगी और बहुत खूबसूरत बन जाती है। उनके दादाजी पेशे से शिक्षक थे और उन्हें किताबों का बहुत शौक था। एक दौर में उनकी व्यक्तिगत लाइब्रेरी काफी बड़ी थी। वे बताते थे कि बॉब डिब्बन जैसे संगीतकार और लेखकों के साथ उनका उठना-बैठना था। दादाजी के साथ रहकर ही चारू ने विदेशी मेहमानों की रूचियों को लेकर समझ बनी।

चारू बताती हैं कि उन्होंने फाइन आर्ट की पढ़ाई करने के बाद छुट-पुट रूप से नौकरी भी की, लेकिन हमेशा अंदर से लगता था कि वे इस काम के लिये नहीं बनी हैं। उन्हें कुछ अपने मन का करना है। फिर उनके मन में इस तरह के कैफे को खोलने का विचार आया और दोस्तों की मदद से दो साल इसकी शुरुआत की। फाइनआर्ट की पढ़ाई, कुमाउंनी व्यंजनों और संस्कृति की समझ एवं साइकोलॉजी के ज्ञान से इसको चलाना काफी सहज हो गया।

उनकी कोशिश रहती है कि उनके कैफे में आने वाला सिर्फ खाना ही नहीं खाएं, बल्कि वे उसे अपनी जगह मानकर इंज्वॉय करें। कहती हैं, हमारे कैफे में जो लोग आते हैं, वे इसको अपनी आत्मीय जगह की तरह इस्तेमाल करते हैं। यहां आकर वे संगीत सुनते हैं, पेंटिंग्स बनाते हैं, लेखन भी करते हैं। यह सृजनात्मकता के लिए अच्छी जगह है।

चारू बताती हैं कि उन्होंने इस जगह को पांच साल के लिए लीज पर लिया है। दोस्तों की मदद से उन्होंने इसको तैयार किया है। हालांकि उनकी कोशिश है कि कहीं खुद की जगह पर अपना यह सपना पूरा करें, इसके लिए वे प्रयासरत हैं।

चारू के इस शानदार काम में चुनौतियों की भी भरमार है। चारू बताती हैं कि उन्हें एक साल तो अपने परिवार वालों को ही मनाने में लगा। परिवार का मानना था कि इतनी पढ़ाई करने के बाद इस तरह का काम करना ठीक नहीं हैं। हालांकि अब वे धीरे-धीरे ही सही, उसके काम को समझने लगे हैं, लेकिन अभी भी समाज को समझाना काफी कठिन है। समाज में बहुत से लोग हैं, जो महिलाओं के काम को स्थान और सम्मान देने के बजाय उनके बारे में अफवाहें फैलाने से बाज नहीं आते। ऐसे ही कुछ लोगों का चारू को भी सामना करना पड़ता है।

वे बताती हैं कि संगीत और कला का खान-पान के साथ का यह समागम लोगों की समझ से परे है। वे इसको बड़ी संकोच और शक की नजर से देखते हैं। हालांकि युवा पीढ़ी उनके काम को हाथों-हाथ ले रही है। वहीं विदेशी पर्यटकों को उनका यह अनोखा काम खासा पसंद आ रहा है। मशहूर यूट्यूब ब्लॉगर दिल्ली फूड वॉक delhi food walks के अभिनव Anubhav Sapra भी यहां आकर चारू के काम को सराह चुके हैं।

वे सुबह 10 बजे से रात 10 बजे तक इसको चलाती हैं। कैफे का सारा काम खुद करने को लेकर उनका कहना है कि यदि आपको कोई काम पसंद है तो उसमें आप रम जाते हैं। वे बताती हैं कि कला का बैकग्राउंड होने के चलते वे खूब सारी नई चीजों को अपनाती रहती हैं। वे कबाड़ से चीजों को जीवंत बनाने से लेकर खाने में भी नए-नए प्रयोग करती हैं।
ध्यानार्थ : नवरात्र विशेष सीरीज की यह दूसरी कड़ी है। नवरात्र के नौ दिन हम आपको कला, संस्कृति, खेल, उद्योग, स्वरोजगार आदि क्षेत्रों में काम करने वाली उत्तराखंड की बेटियों की कहानी से रूबरू कराएंगे, तो फिर जुड़े रहिए हमारे साथ।