मेलु घिंघोरा की दाणी खेजा… - Himalaya Lovers

मेलु घिंघोरा की दाणी खेजा…

hys_adm | September 27, 2020 | 0 | जंगल , पर्यावरण

मेलु घिंघोरा की दाणी खेजा, छोया दुलुयुं कु पानी पेजा…. उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध लोकगीतकार नरेन्द्र सिंह नेगी के इस भावुक गीत में घिन्गोरा की दाणी खेजा की जो बात हो रही है, पहाड़ के लोग इसके दीवाने होते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये घिंघोरा है क्या? इसका स्वाद कैसा होता है? आखिर पहाड़ी लोग इसको लेकर इतने क्यों भावुक होते है? चलिए इस लेख में जानते हैं…

घिंघोरा के लाल फलों से लकदक पेड़ Photo : himalaya lovers

सितम्बर-अक्टूबर में पहाड़ में हरियाली के बीच घिंगारू (घिंघोरा) की लाल-लाल फलों से लकलद झाड़ियां अपनी लालिमा बिखेर रही होती हैं। मध्य हिमालयी क्षेत्रों में यह जंगलों में बहुतायत पाया जाता है। यह हिमालयन फायर थार्न और हिमालयन रेड बेरी के नाम से जाना जाता है। घिंगारू का वैज्ञानिक नाम पाइरैकैंथा रुक्रेनुलेटा (Pyracantha crenulate) है। यह रोजेसी (Rosaceae) पादप कुल से संबंधित है। मध्य हिमालयी क्षेत्र में यह सामान्यतः 3000 से 6500 फीट की ऊंचाई पर पाया जाता है।
घिंघारू को पहाड़ के लोग बड़े चाव के साथ खाते हैं। इसके फल का स्वाद सेब जैसा ही होता है। इसकी झाड़ियों पर सितम्बर के शुरुआत में सफेद रंग के फूल खिलते हैं, जिनपर धीरे-धीरे हरे-हरे फल आते हैं। दिखने में यह सेब के जैसे ही होते हैं, किंतु आकार में सेब की तुलना में बहुत ही छोटे होते हैं। पकने पर ये फल सुर्ख लाल रंग के हो जाते हैं।
इसके फलों को पशु-पक्षी खूब चाव से खाते हैं। यह जगलों में जहां एक ओर भूस्खलन को रोकने में काफी मददगार होता है वहीं यह जंगली जानवरों के लिए फल और पत्ती के रूप् में आहार उपलब्ध कराता है।

घिंघोरा जितना सुंदर दिखने में है, उतना ही शानदार इसका स्वाद है। Photo : himalaya lovers

घिंघारू अपनी बहुउपयोगिता के चलते ही यह इतना लोकप्रिय है। इसकी छोटी-छोटी कंटीली झाड़ियों पर सेब के आकार जैसे छोटे-छोटे फलों स्वादिष्ट होने के साथ ही रक्तचाप और हाईपरटेंशन जैसी बीमारी को दूर करने की काबिलियत रखता है। साथ ही यह हृदय संबंधी विकार और मधुमेह में उपयोगी सिद्ध होता है। इसकी पत्तियां एंटीऑक्सीडेंट और एंटीइन्फलामेट्री गुणों से भरपूर होने के कारण इसकी पत्तियों का उपयोग हर्बल टी के रूप में भी खूब उपयोग किया जा रहा है।
घिंघारू की लकड़ी मजूबत व लचीली होने के चलते पहाड़ों में इसका उपयोग छड़ी के रूप में किया जाता है। साथ ही इसकी लकड़ी से दरांती का हत्था बनाने में परम्परागत रूप से उपयोग होता है। यही वजह है कि जंगलों में उगने वाली यह झाड़ी जंगली जानवरों, पहाड़ के लोगों, खेती किसानी और प्रकृति के लिए बहुत ही सहायक है।

Team Himalaya Lovers

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