
हिमालय बचाओ अभियान : सफल पर्यावरणीय मुहिम
hys_adm | June 8, 2025 | 3 | पर्यावरण
पत्रकारिता जब जनहित के मुद्दों से जुड़ती है तो वह सिर्फ खबरों तक सीमित नहीं रहती, वह जनचेतना का वाहक बन जाती है। ‘हिन्दुस्तान हिमालय बचाओ अभियान’ इसका जीवंत उदाहरण है। यह महज एक मीडिया पहल नहीं है, बल्कि उत्तराखंड में जन-जन की भावना और सहभागिता से उपजा एक पर्यावरणीय आंदोलन बन चुका है। इस पूरे अभियान के पीछे एक प्रमुख नाम उभरकर सामने आता है और वह है, वरिष्ठ पत्रकार गिरीश चंद्र गुरुरानी, जो हिन्दुस्तान उत्तराखंड के संपादक हैं। यह उनकी दूरदृष्टि, प्रतिबद्धता और नेतृत्व क्षमता है कि, जिसने एक विचार को लाखों लोगों के बीच एक मिशन बना दिया।
एक विचार से शुरुआत
‘हिमालय हमारी आस्था ही नहीं, अस्तित्व का भी सवाल है। उसकी रक्षा आज समय की सबसे बड़ी पुकार है।’ इसी भाव के साथ वर्ष 2012 में स्वतंत्रता दिवस के दिन गिरीश गुरुरानी के मन में एक सवाल आया, क्या हिमालय की रक्षा के लिए हम कोई स्थायी जनचेतना अभियान नहीं चला सकते? उत्तराखंड में लगातार बढ़ते पर्यावरणीय संकट, प्राकृतिक आपदाएं और ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने जैसे संकेत इस विचार की पृष्ठभूमि में थे। उन्होंने इस पर हेस्को के संस्थापक डॉ. अनिल जोशी से विचार-विमर्श किया और एक नौ दिवसीय अभियान की रूपरेखा तैयार की। गिरीश गुरुरानी ने स्वयं हिमालय प्रतिज्ञा लिखी, जिसे लेकर उन्होंने अनुमान भी नहीं लगाया था कि आने वाले वर्षों में यह उत्तराखंड के लाखों छात्र-छात्राओं, नागरिकों, प्रशासनिक अधिकारियों, सेना और पुलिस बलों की जुबान पर होगी।

अभियान का विस्तार
एक सितंबर 2012 से हिमालय बचाओ अभियान का उत्तराखंड में विधिवत शुभारंभ हुआ। इससे पहले ‘हिन्दुस्तान’ देहरादून कार्यालय में संपादकीय टीम की बैठक में इसे सफल बनाने के लिए मंथन हुआ। गिरीश गुरुरानी (Girish Gururani) बताते हैं कि एक सितंबर 2012 को कार्यक्रम होना तय हुआ तो इसी दिन के अखबार में इसे लेकर एक खबर छपी और लोग उसे पढ़कर सुबह ही कार्यालय पहुंच गए। हिन्दुस्तान स्टाफ ने लोगों की मौजूदगी में पहली ‘हिमालय प्रतिज्ञा’ में हिस्सा लिया। पहले दिन अभियान से जुड़ने वालों में एक वरिष्ठ आईएएस भी शामिल थे। देखते ही देखते बच्चों से लेकर सीमा पर तैनात जवानों तक, शिक्षकों से लेकर साधु-संतों तक, पूरे उत्तराखंड ने इस अभियान को हाथों-हाथ लिया। पहले ही वर्ष प्रतिदिन हजारों लोग इससे जुड़ने लगे।
एक पत्रकार से अभियान-समन्वयक तक
गिरीश चंद्र गुरुरानी की सोच पारंपरिक पत्रकारिता से परे थी। उन्होंने हिमालय को खबर नहीं, जीवंत विषय बनाया। 13 जिलों में अभियान कॉओर्डिनेटर नियुक्त किए। व्यक्तिगत रूप से स्वयंसेवी तैयार किए। स्वयंसेवी संस्थाओं को जोड़ा। समय-समय पर इनकी भूमिका में बदलाव होते रहे, लेकिन 2012 से लेकर आज तक जिलों में यही संरचित नेटवर्क इस अभियान को गति प्रदान कर रहा है। स्कूलों, कॉलेजों, प्रशासनिक संस्थाओं से लेकर अर्धसैनिक बलों तक को अभियान में जोड़ा गया।

अभियान में ‘हिन्दुस्तान’ टीम का अमूल्य योगदान
किसी भी बड़े अभियान को आकार देने और जमीन पर उतारने का काम करती है एक समर्पित टीम। ‘हिन्दुस्तान हिमालय बचाओ अभियान’ (Hindustan Himalaya Bachao Abhiyan) को भी ऐसी ही टीम ने सफल बनाया। वरिष्ठ पत्रकार गिरीश चंद्र गुरुरानी स्वयं मानते हैं कि यदि यह अभियान 12 वर्षों तक निरंतर और प्रभावी ढंग से चलता रहा, तो उसके मूल में ‘हिन्दुस्तान’ टीम का सामूहिक सहयोग और प्रतिबद्धता रही है। गुरुरानी बताते हैं कि अभियान के हर चरण और हर आयोजन में उत्तराखंड स्टेट ब्यूरो, देहरादून सिटी ब्यूरो और सभी जिला ब्यूरो की सक्रिय भागीदारी रही। विशेष रूप से अविकल थपलियाल, दर्शन रावत और नवीन थलेड़ी, जो इन वर्षों में हिन्दुस्तान स्टेट ब्यूरो के प्रभारी रहे, इन्होंने इस अभियान के लिए अहम सहयोग दिया। देहरादून सिटी ब्यूरो के इंचार्ज रहे संजीव कंडवाल, संतोष चमोली और ठाकुर सिंह ने हर वर्ष अभियान के आयोजन और कवरेज में सराहनीय सहयोग किया। स्टेट ब्यूरो के विशेष संवाददाता चंद्रशेखर बुड़ाकोटी ने विशेष रूप से शिक्षा विभाग को अभियान से जोड़ने में सेतु की भूमिका निभाई। राज्य ब्यूरो से विमल पुर्वाल, रवि नेगी और विनोद मुसान का सहयोग भी इस क्रम में अहम रहा।
डेस्क और रिपोर्टिंग टीम की अहम भूमिका
सिटी रिपोर्टिंग टीम के सदस्यों में शैलेंद्र सेमवाल, ओम प्रकाश सती, अंकित चौधरी, महावीर चौहान, चांद मोहम्मद, रविंद्र थलवाल और ठाकुर सिंह नेगी जैसे नाम शामिल रहे, जिन्होंने अभियान की स्थायी कवरेज सुनिश्चित की। छायाकार नवीन कुमार और पारस ने अभियान को तस्वीरों के जरिये संजोने में प्रभावी भूमिका निभाई। पूर्व समाचार संपादक पूरन बिष्ट, जो उत्तराखंड की सामाजिक और पर्यावरणीय नब्ज को समझते हैं, उनका सहयोग अभियान को दृढ़ता प्रदान करता रहा। डेस्क के सहयोगियों- संजय घिल्डियाल, दिनेश जोशी, राहुल देव, ओपी बेंजवाल, सुनील डोभाल, विनोद नौटियाल, हिमांशु जोशी, कौशलेंद्र सिंह, उषा रावत, पंखुड़ी, महादेव कोठारी, खुशहाल गिरी गोस्वामी, नागेंद्र पंकज, विजय भट्ट, आलम पंवार का योगदान भी अभियान को पाठकों तक पहुंचाने में अमूल्य रहा। एचआर से पवन सुंदरियाल ने सहयोग दिया।
जिलों में अभियान के स्तंभ
गढ़वाल और कुमाऊं के जिलों में ब्यूरो प्रभारियों ने इस अभियान को जमीनी ताकत दी। हल्द्वानी के संपादक राजीव पांडे ने कुमाऊं में अभियान को एग्जीक्यूट करने में प्रभावी भूमिका निभाई। सिटी इंचार्ज जहांगीर राजू सहयोग भी बराबर मिला। कुमाऊं मंडल में अल्मोड़ा से मुकेश सक्टा, पिथौरागढ़ से डॉ. नरेश कांडपाल, रुद्रपुर से अजय जोशी, चंपावत से योगेश जोशी और नैनीताल से भानु जोशी ने अभियान को मजबूती से आगे बढ़ाया। गढ़वाल मंडल में ऋषिकेश से मनोहर काला, हरिद्वार से सागर जोशी, रुड़की से महेश्वर सिंह, पौड़ी से अनिल भट्ट, टिहरी से प्रभात डबराल, श्रीनगर से अंकित भट्ट, रुद्रप्रयाग से बद्री नौटियाल, चमोली से क्रांति भट्ट, कोटद्वार से आशीष बलोदी, उत्तरकाशी से सुरेंद्र नौटियाल, जोशीमठ से पूरन भिलंगवाल और विकासनगर से हरीश कंडारी ने सक्रिय भूमिका निभाई।
साझे प्रयास से साकार हुआ अभियान
कई ऐसे पुराने सहयोगी भी रहे, जिनका योगदान समय-समय पर इस अभियान में महत्वपूर्ण रहा है। इनमें निक्का राम, अमर ठाकुर, दीपक सेमवाल, स्वर्गीय कैलाश बड़ोनी, महेश पांडे, श्रीकृष्ण उनियाल और मनमोहन सिनवाल जैसे नाम शामिल हैं। ‘हिन्दुस्तान हिमालय बचाओ अभियान’ किसी एक व्यक्ति या विभाग का नहीं, बल्कि एक साझा पत्रकारिता, सामाजिक जिम्मेदारी और पर्यावरणीय चेतना का जमीनी उदाहरण है, जिसे ‘हिन्दुस्तान’ की टीम ने मिलकर साकार किया।

09 का संकल्प
गिरीश गुरुरानी की विशेष रणनीति थी, ‘09 का संकल्प’। इसमें प्रतिवर्ष 9 दिन का अभियान, 9 हजार स्कूलों तक पहुंच, 9 लाख छात्र-छात्राओं से संवाद और 9 सितंबर यानी हिमालय दिवस शामिल था।
अभियान पर एक नजर
-13 वर्षों से निरंतर चल रहा अभियान, 13 जिलों में सक्रिय टीमें
-13 वर्षों में एक करोड़ से अधिक नागरिकों की इसमें भागीदारी
-2024 में करीब साढ़े लाख लाख लोगों की सक्रिय भागीदारी रही
-आईटीबीपी, एसएसबी, सीआरपीएफ, पुलिस, सेना की भागीदारी
-राज्यस्तरीय भाषण प्रतियोगिता, जिसमें हजारों छात्र हिस्सा लेते हैं
जनभावना, चिंता और समाधान का संकल्प
इस अभियान ने दिखाया कि अखबार केवल सूचनाओं का माध्यम नहीं है, वह विचारों का सेतु भी हो सकते हैं।‘हिन्दुस्तान’ की रिपोर्टिंग, संपादकीय टिप्पणियां, विशेषज्ञों के विचार और स्थानीय संवाददाताओं की सहभागिता ने अभियान को गहराई दी। इस अभियान की खबरों में जनभावना, चिंता और समाधान का संकल्प था।

अभियान की आत्मा: हिमालय प्रतिज्ञा
‘हिमालय हमारे देश का मस्तक है। विराट पर्वतराज दुनिया के बड़े भूभाग के लिए जलवायु, जल-जीवन और पर्यावरण का आधार है। इसके गगनचुंबी शिखर हमें नई ऊंचाई छूने की प्रेरणा देते हैं। मैं प्रतिज्ञा करता/करती हूं कि मैं हिमालय की रक्षा का हर संभव प्रयत्न करूंगा/करूंगी। ऐसा कोई कार्य नहीं करूंगा/करूंगी, जिससे हिमालय को नुकसान पहुंचे।’

Hindustan Himalaya Bachao Abhiyan की प्रमुख उपलब्धियां
-Himalaya Diwas (9 सितंबर) को पूरे उत्तराखंड में राजकीय स्तर पर समारोहपूर्वक मनाया जाने लगा, जो इस अभियान की एक स्थायी उपलब्धि बन गई।
-जिला, ब्लॉक, विद्यालय, गांव एवं नगरों में वार्ड स्तर पर ‘हिमालय क्लबों’ का गठन किया गया, जो वर्षभर पर्यावरणीय जागरूकता और संरक्षण से जुड़ी गतिविधियों का संचालन करते हैं। इन क्लबों ने भी जन भागीदारी कराने में अहम योगदान दिया।
-पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में जमीनी स्तर पर कार्य कर रहे लोगों को राज्यस्तरीय मंच पर सम्मानित किया गया, जिससे न केवल उनके कार्यों को सार्वजनिक मान्यता मिली, बल्कि पर्यावरण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और सक्रियता भी बढ़ी।
-वर्ष 2023 में राज्य सरकार ने हिमालय दिवस पर ई-व्हीकल पर टैक्स छूट की घोषणा कर पर्यावरण संरक्षण के संदेश को नीतिगत समर्थन दिया।
-उच्च हिमालयी क्षेत्रों में मानवीय हस्तक्षेप कम करने को लेकर कई महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए गए, पर्यावरणीय स्वीकृति की शर्तें सख्त होना आदि।
-हिमालय प्रतिज्ञा को कई स्कूलों ने अपनी नियमित प्रार्थना सभा में शामिल किया, जिससे बच्चों में पर्यावरणीय चेतना की गहरी समझ विकसित हुई।
-अभियान से प्रेरित होकर पहाड़ों में ‘चाल-खाल’ (पारंपरिक जल-संरक्षण ढांचे) को बचाने और पुनर्जीवित करने की स्थानीय पहलें शुरू हुईं।
-‘पेड़ लगाना ही नहीं, उसे बचाना भी हमारी जिम्मेदारी है’। इस विचार को समाज में व्यापक स्वीकृति मिली।
-कई स्वयंसेवी संगठन, शिक्षक और युवा समूह स्थानीय स्तर पर पौधरोपण, सफाई और जल-संरक्षण जैसे अभियान चलाने लगे।
-आईटीबीपी, एसएसबी, सेना और पुलिस बलों ने अभियान में भागीदारी की, जिससे इसका प्रभाव राज्य की सीमाओं से भी आगे बढ़ा।
-भाषण प्रतियोगिता, निबंध लेखन जैसे आयोजनों ने युवाओं में हिमालय के प्रति रचनात्मक अभिव्यक्ति और चिंतन का अवसर दिया।
-अभियान के तहत डिजिटल सामग्री यानी वीडियो, हिमालय प्रतिज्ञा पोस्टर, तस्वीरें आदि से भी संदेश को घर-घर पहुंचाया गया।
विचार से आंदोलन तक की यात्रा
‘हिन्दुस्तान हिमालय बचाओ अभियान’ आज एक मिसाल है। यह पत्रकारिता की उस शक्ति का प्रमाण है, जो नीतियों को प्रभावित कर सकती है, जनमानस को जागरूक कर सकती है और समाज को दिशा दे सकती है। Girish Chandra Gururani की दूरदर्शिता, नेतृत्व और संकल्प ने यह सिद्ध कर दिया कि एक व्यक्ति की सोच अगर जनचेतना बन जाए, तो वह इतिहास गढ़ सकती है।

प्रमुख सहयोगी संस्थान एवं संगठन
वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान, शिक्षा विभाग, गढ़वाल एवं कुमाऊं विश्वविद्यालय, श्रीदेव सुमन विवि, उत्तराखंड तकनीकी विश्वविद्यालय, ग्राफिक एरा विवि, उत्तराखंड पुलिस, आईटीबीपी, सेना, एसएसबी, राज्य के सभी नगर निकाय, श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति, संत निरंकारी मिशन, श्री गुरु राम राय दरबार साहिब, संयुक्त नागरिक मंच समेत विभिन्न व्यापारी संगठन, सामाजिक संगठन, प्रमुख राजनीतिक दल, एबीवीपी-एनएसयूआई समेत विभिन्न छात्र संगठन आदि।