चमोली जिले में एक और चिपको आंदोलन हुआ था, जानिए कहां -

चमोली जिले में एक और चिपको आंदोलन हुआ था, जानिए कहां

hys_adm | July 19, 2020 | 0 | जंगल , पर्यावरण

चमोली जिले के कड़ाकोट क्षेत्र के डुंग्री में उद्यान विभाग द्वारा प्रस्तावित सेब और आलू के बगीचे के लिए 100 एकड़ जंगल को काटकर इसमें नर्सरी बनाई जानी थी। गांव से लगे जंगल से ग्रामीणों की जरूरतें पूरी होती थीं। इसलिए महिलाएं इस विकास के नाम पर हो रहे विनाश के खिलापफ आंदोलनरत हुईं।
चिपको आंदोलन 1973 में मंडल गोपेश्वर से शुरू हुआ। इसके बाद पफाटा रामपुर, रैंणी में भी हुआ। डुंग्री में यह आंदोलन 1980 में हुआ, जिसमें महिलाओं ने विकास के नाम पर काटे जा रहे 100 एकड़ भरे पूरे जंगलों को बचाने की लड़ाई लड़ी।
हुआ यह कि डुंग्री गांव से समीप बांज-बुरांश के घने जंगल थे। इन जंगलों का सीध-सीध पफायदा गांव के लोगों को खेती और पशुुपालन के लिए होता था। सरकार ने वहां उद्यान विभाग की किसी योजना के लिए 100 एकड़ जगलों को काटने की मंजूरी ले ली। इसके कटान का ठेका दिया गया। ठेकेदार अपने मजदूरों को लेकर जंगल काटने आया तो महिलाओं ने इसका विरोध् किया। गांव की करीब डेढ़ सौ से अध्कि महिलाओं ने इसका पुरजोर विरोध् किया। पूरा क्षेत्रा दो ध्ड़ों में बंट गया था। कुछ लोग थे जो चाहते थे कि जंगल कटे और विकास हो। ये महिलाएं चाहती थी कि विकास के नाम पर उनके जंगलों का विनाश न किया जाए।
पत्राकार रमेश पहाड़ी ने मुझे इस आंदोलन के बारे में बताया तो हम भी 6-7 किलोमीटर पैदल चलकर गांव पहुंचे। जब हम गांव पहुंचे तो जंगल काटने के समर्थकों ने महिलाओं को ध्मकाया कि किसी बाहरी व्यक्ति का सहयोग न किया जाए, लेकिन हम जैसे ही पहुंचे तो बड़ी संख्या में महिलाएं हमारे साथ जंगल में गईं और मजदूरों से कुल्हाड़े छीन ली। यहां मजदूरों को काम नहीं करने दिया और उन्हें लौटा दिया।
आंदोलन के दबाव के चलते जांच के लिए एसडीएम घोड़े पर नारायणबगड़ के रास्ते डुंग्री के लिए चले। हम भी नलगांव के रास्ते पैदल 9-10 किलोमीटर चलकर उनसे पहले पहुंच गए। हमारे जाते ही महिलाओं को कापफी राहत मिली और उन्होंने अपनी मांगों को प्रशासन के सामने रख दिया। इसके बाद एक कमेटी बनाई गई।
कमेटी ने रिपोर्ट दी कि जंगल गलत काटा जा रहा है। इस पर तत्काल रोक लगनी चाहिए। अस्पताल, स्कूल आदि विकास कार्य जरूर होने चाहिए, लेकिन इनके लिए जंगल के जंगल नहीं काटे जा सकते। उस दौर में कुछ लोगों ने
मुझे खूब सारी ध्मकी भरी चिट्ठियां भेजी, लेकिन महिलाओं के इस आंदोलन
ने आखिकार सपफलता हासिल की। बड़ी संख्या में हरे भरे जंगल के कटान को रोक लिया।
पैंतोली-डुंग्री में हुए इस आंदोलन की नायिका थीं गायत्राी देवी। गायत्राी देवी बहुत जुझारू महिला हैं। उन्होंने उस दौर में बहुत कष्ट और उपेक्षाएं सही। क्योंकि उनकी यह लड़ाई अपनों से ही थी।

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