
पहाड़ी माल्टा मतलब, स्वाद और सेहत से भरपूर
hys_adm | August 9, 2020 | 0 | कैटेगरी , खेती-किसानी , पर्यावरण
पहाड़ी इलाकों में होने वाले माल्टा और खटाई (पहाड़ी नींबू) का स्वाद हर उत्तराखंडी जानता है। ये देश और दुनिया के लोगों को भी अपनी तरफ आकर्षित कर रहा है। सर्दियों के वक्त विटामिन सी से भरपूर ये फल पैदा होता है। हमारी त्वचा को चमकदार बनाने, खाना पचाने और ना जाने कितने फायदे इस फल के हैं। जानिए माल्टा और खटाई के फायदे…
माल्टा (संतर)
माल्टा तो आपने बहुत खाया होगा, लेकिन इसकी खूबियां भी क्या आप जानते हैं। माल्टा उत्तराखण्ड का महत्वपूर्ण फल है। यह शरीर की रोग प्रतिरोधात्मक शक्ति को बढ़ाता है और विटामिन-सी की कमी को भी पूरा करता है। माल्टा निमोनिया, ब्लड प्रेशर और आंत संबंधित समस्याओं के लिए भी रामबाण है। यह साइट्रस प्रजाति का फल है, जिसका वैज्ञानिक नाम सिट्रस सीनेंसिस है। माल्टा सर्दियों में पेड़ पर पकता है।
माल्टे का जूस पौष्टिक और औषधीय गुणों से भरपूर है। माल्टा का सेवन शरीर में एंटीसेप्टिक और एंटी ऑक्सीडेंट गुणों को बढ़ाता है। माल्टा के छिलके का उपयोग सौन्दर्य प्रसाधन, भूख बढ़ाने, अपच और स्तन कैंसर के घाव की दवा में भी किया जाता है। चमोली, पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर, चम्पावत तथा उत्तरकाशी में माल्टा बहुत मात्र में पैदा होता है। चमोली जिले के मंडल घाटी, थराली, ग्वालदम, लोल्टी, गैरसैंण तो माल्टा उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हैं। उत्तराखण्ड में माल्टा केवल स्थानीय बाजारों और पर्यटकों को बेचे जाने तक ही सीमित है। वहीं हिमाचल प्रदेश में माल्टे के लिए प्रसिद्ध घाटी मडूरा में कई सालों से फैव इण्डिया जैसी बड़ी कंपनियां माल्टे से कई उत्पाद तैयार कर रही हैं। हिमालय की तर्ज पर उत्तराखंड में भी माल्टे को बड़े स्तर पर कारोबार से जोड़ने पर काम किया जाना जरूरी है।
खटाई (पहाड़ी नींबू)
शायद ही कोई ऐसा पहाड़वासी होगा, जिसने खटाई (लिम्मा) का आनन्द नहीं उठाया होगा। खटाई को विशेष स्वाद के लिए जाना जाता है। पीसा हुआ पहाड़ी नमक मिलाकर इसका स्वाद और भी लाजवाब हो जाता है। सर्दियों में गुनगुनी धूप में खटाई का जमकर आनंद लिया जाता है। यह पसंदीदा फल न सिर्फ भारत में ही प्रसिद्ध है, बल्कि चीन, मैक्सिको, अर्जेन्टाइना, ब्राजील, यूएस, तुर्की, इटली, स्पेन, ईरान आदि में भी खूब चाव से खाया जाता है। चीन और भारत में खटाई का सबसे ज्यादा उत्पादन होता है। उत्तराखण्ड में खासकर अल्मोड़ा, उत्तरकाशी, टिहरी, चमोली, बागेश्वर, पिथौरागढ़ जिलों में खटाई पाई जाती है।
खटाई का वैज्ञानिक नाम ‘सिट्रस लेमन’ है। इस प्रजाति के फलों में ‘सिट्रिक एसिड’ अधिक पाई जाती है। खटाई विटामिन-सी का एक अच्छा प्राक`तिक स्रोत है। खटाई का रसीला भाग ही नहीं, बल्कि इसका छिलका उपयोगी है। वैज्ञानिक नजरिये से देखें तो छिलके दो भाग होते हैं। एक भाग लेवीडो तथा दूसरा एल्बेडो होता है। लेवीडो बाहरी भाग होता है, जो कि इसेंसियल ऑयल का प्रमुख स्रोत है। यह प्राचीनकाल से ही लेवर और सुगंध के लिए प्रयोग किया जाता है, जबकि एलबेडो छिलके का अंदरूनी हिस्सा कहताता है। यह फाइबर का एक अच्छा स्रोत होता है। खटाई को परम्परागत रूप से विभिन्न स्वास्थ्य लाभ हेतु प्रयोग किया जाता है। इसका सेवन पेट के रोगों में लाभदायक माना जाता है। यह स्वरोजगार का एक अच्छा विकल्प भी है। इससे जूस, अचार, चटनी और एनर्जी ड्रिंक्स तैयार की जाती है जिसकी बाजार में अच्छी मांग रहती है।