
लोकगीतों, कहानियों और किस्सों में रचाबसा नाम हिंसर
hys_adm | July 19, 2020 | 0 | कैटेगरी , परम्परा , पहाड़ की बात
प्रकृति ने पहाड़ों को दिल खोल कर उपहार दिये हैं। देखिये न यहीं उपहार यहां के जंगलों में भांति-भांति के फल, फूल और कंद-मूल के रूप में बिराजमान हैं। आप यहां के जंगलों में बारहों महीने कुछ न कुछ फलते-फूलते देख सकते हैं जिससे यहां के इन पशुपक्षियों और आम जन को भोजन मिलता है। प्रकृति के ऐसे ही अनमोल खजाने में रसीले हिंसर का स्थान सबसे अनूठा है। जी हां वहीं हिंसर जिसे पहाड़ में हिसोल, हिंसालु के नाम से भी जानते हैं। तो चलिये प्रकृति के इस अनमोल खजाने के बारे में ज्यादा जानने के लिये ले चलते हैं आपको उत्तराखण्ड की हसीन वादियों में।
उत्तराखण्ड के लोकगीतों, कहानियों और किस्सों में रचाबसा नाम है हिंसर। कहने को तो यह स्वतः उगने वाली झाड़ी है लेकिन अपने रसभरे फलों की वजह से यह पशु-पक्षियों और पर्वत जनों को कायल किये हुये है। उत्तराखण्ड में जहां इसे हिंसर, हिंसालु, हिंसोल के नामों से पुकारा जाता है वहीं विश्व समुदाय इसको यलो रसबेरी, हिमालयन रसबेरी, एनसेलर आदि नाम से भी पुकाराता है। आपको बताते चले कि इसका वैज्ञानिक नाम रूबस इलिप्टिकस है, जो कि रोसेसी (त्वेंबमंम) कुल का पौधा है।

उत्तराखण्ड में हिंसर मई-जून में फलता है। इसकी झाड़ियों में छोटे-छोटे सुनहरे फलों को देख इनको खाये बिना नहीं रहा जाता। इसकी कंटीली झाड़ियों से बड़े करीने से इनको बिनकर लाया जाता है। पहाड़ के बच्चे इनको बिनकर अपने घरों में लाते हैं और फिर परिवार के साथ होती है हिंसर पार्टी।
इस कहानी को सुनने के बाद आपको लग रहा होगा कि हिंसर सिर्फ उत्तराखण्ड में ही उगता है। अगर आप ऐसा सोच रहे हैं तो आप गलत हैं। जी हां उत्तराखण्ड के अलावा यह आस्टैलिया, माॅरीसस, नेपाल, फिलिपीन्स और वियतनाम आदि देशो में भी पाया जाता है। वैसे इसका मूल स्थान साउथ एशिया माना जाता है। आपको बताते चले कि पर्वतीय क्षेत्रों में 750 से 1800 मीटर समदु्र तल की उंचाई पर पाया जाता है।

औषधीय गुणों के मामले में तो हिंसर का कोई सानी नहीं। इसका भरपूर उपयोग परम्परागत औषधीय में किया जाता रहा है। इसके पत्तों, जड़, फल और फूल का उपयोग विभिन्न ब्याधियों के उपचार के लिये किया जाता रहा है। हिंसर में पोषक तत्वो जैसे कार्बोहाइट्रेड, सोडियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटेशियम, आयरन, जिंक आदि तत्व प्रचुर मा़त्रा मे पाये जाते हैं।
इतने सारे गुणों के चलते बहुत से देशों में हिंसर से जैम, जेली, चटनी और शराब बनाई जाती है। लेकिन उत्तराखण्ड में यह लोक के गीतों और पहाड़ के लोगों की जुबान तक सिमित है। आज जरूरत है कि उत्तराखण्ड में भी इसके व्यापारिक नजरिये से उत्पादन करने की ताकि हिंसर को लेकर लोक में व्याप्त गीतों, गाथाओं के अलावा यह आमदनी का जरिया भी बन पाये।