लोककथा : बारिश के बुलबुले -

लोककथा : बारिश के बुलबुले

hys_adm | July 19, 2020 | 0 | कला साहित्य , लोककथाएं

बात उन दिनों की है जब देश में लोग लम्बी लम्बी यात्राएं पैदल तय किया करते थे। यातायात के साध्न बहुत कम थे पहाड़ों में लोग अपने जीवनोपयोगी आवश्यकताओं की चीजें लेने गांवों से कई सौ किलोमीटर दूर शहरों में जाया करते थे। उत्तराखण्ड में तब रामनगर, कोटद्वार ऋषिकेश ही प्रमुख मंडिया हुआ करती थी। जहां से लोग अपनी आवश्यकता की वस्तुएं पीठ पर लादकर लाया करते थे। तब लोग गांवों से घी को इन मण्डियों में ले जाकर बेचते थे और बदले में नमक, गुड़ और कपड़ा खरीदते थे। उन दिनों लोग चोरों और जंगली जानवरों के डर से कापफी बड़े जत्थे में यात्रा पर जाया करते थे।
कड़ाकोट के किसी गांव में किशनू और विशनू नाम के दो युवक रहते थे। दोनों बहुत साहसी थे। गांव के लोग शहरों की तरपफ खरीददारी के लिए निकल रहे थे। किशनू और विशनू ने सोचा कि क्यों न हम भी शहर में जाकर खरीददारी करें और वे कोटद्वार के लिए चल पड़े। साथ में उन्होंने घी से भरे बर्तन और रास्ते के लिए रोटियां बांध् ली। आठ दिन की लम्बी थका देने वाली यात्रा के बाद आखिरकार वे कोटद्वार पहुंच गये। दोनों ने सबसे पहले घी को अच्छे दाम में बेचा और फिर गुड़, नमक और कपड़े खरीद लिए। रास्ते में खाने के लिए भी उन्होंने अलग से गुड़ और चना खरीद कर रख दिया। दोनों दोस्त दिनभर पैदल यात्रा करते और रात होने पर किसी गुपफा या पेड़ के नीचे आग जलाकर अपना डेरा जमाते। साथ में लाए गुड़ और चने को खाकर सो जाते। आखिर पांचवे दिन होते-होते वे अपने इलाके के जंगलों तक पहुंच गए। जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था वैसे-वैसे दोनों की घर पहुंचने की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। रास्ते में बारिश शुरू हो गई।
दोनों जल्दी-जल्दी बारिश से बचने के लिए रास्ते के पास की गुपफा में चले गये। दोनों ने वहां आग जलाई और चना चबाने लगे, आपस में गपशप करते हुए अपने-अपने सामान के बारे में बात करने लगे। किशनू ने कहा कि मेरा नमक तो साल भर चल जाएगा। बस गुड़ की थोड़ी कमी होगी। वैसे थोड़ा गुड़ तो पिछले साल का भी बचा है। अचानक विशनू के मन में एक भयानक विचार आया उसने सोचा यदि किशनू को मार दें तो उसके सामान से सालभर का नमक और गुड़ की कमी नहीं रहेगी।
उसने किशनू से कहा, अगर मैं तुझे मार दूं तो तेरा यहां कौन पूछने वाला है? किशनू डर के मारे रोने लगा और रोते-रोते बारिश में बन रहे बुलबुलों की ओर इशारा करते हुए उसने कहा कि बारिश के बुलबुले तो तुम्हें देख रहे हैं?
किशनू की बात सुनकर विशनू ठहाके मारकर हंसने लगा और उसने किशनू को मारकर उसका सारा सामान हड़प लिया।
विशनू जब घर पहुंचा तो किशनू के घर वालों ने उसके बारे में पूछा। विशनू ने हैरानी जताते हुए कहा कि किशनू तो उससे पहले घर के लिए चल पड़ा था, क्या अभी तक घर नहीं पहुंचा? इतना कहते हुए विशनू जोर-जोर से रोने लगा। गांव के लोगों को लगा की हो सकता है रास्ते में जंगली जानवरों या डाकुओं ने किशनू को मार दिया होगा।
ध्ीरे-ध्ीरे समय बीतता गया। विशनू की शादी पास के गांव की बिंदू से हो गई। बरसात के मौसम में पहाड़ों पर नदी नाले उपफान पर थे। लोग भारी बरसात की वजह से घरों में दुबके पड़े थे। विशनू भी घर में बैठकर अपनी पत्नी के साथ आग सेक रहा था। अचानक बीच में ही उसने घर की खिड़की खोलकर बाहर हो रही बारिश को देखने के लिए खोला। पठाल वाले घर से पानी आंगन में तेजी से गिर रहा था। आंगन बारिश के पानी से भरा हुआ था। तेज बारिश से आंगन में बारिश के बुलबुले बन और पफूट रहे थे। इन सब बुलबुलों को देखकर विशनू की हंसी छूट पड़ी। उसको बहुत साल पहले अपने दोस्त किशनू की याद आ गई।
उसको इस तरह हंसते देख उसकी पत्नी ने हंसी का कारण पूछा। विशनू घबरा गया और खिड़की बंद करते हुए बोला, बस ऐसे ही आ गई थी हंसी। बिंदू को लगा जरूर कोई बात तो है जिसको विशनू छिपा रहा है। वरना उसके पूछने के बाद वो इतना घबरा क्यों गया। कापफी जोर देने के बाद आखिरकार विशनू ने बिंदू को पूरी कहानी बता दी। बिंदू उसकी बात सुनकर अवाक रह गई। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि विशनू जैसा सरल और सीध इंसान कभी ऐसा कर सकता है। उसकी आंखों में बेचारे मरे हुए किशनू की बूढ़ी मां का चेहरा घूमने लगा, वो विशनू को भी अपने बेटे की तरह ही मानती है।
दूसरे दिन बारिश बंद होने पर बिंदू ने पूरी घटना गांव के लोगों को बता दी। पंचायत बैठी और बिंदू की गवाही पर पंचायत ने विशनू को सजा सुनाई। आखिरकार बारिश के बुलबुलों और बिंदू की समझदारी की वजह से किशनू को न्याय मिला।

लेखक : रश्मी डांगी, गोपेश्वर

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