क्या तुम्हे भी भाते हैं ये नीले गुलमोहर के फूल! -

क्या तुम्हे भी भाते हैं ये नीले गुलमोहर के फूल!

hys_adm | August 9, 2020 | 1 | जंगल , पर्यावरण

गोपेश्वर से जैसे चमोली के लिये मोटरसाइकिल पर जाता हूं तो सड़क पर गुलमोहर के खूब सारे नीले-नीले फूल बिखरे होते हैं। लगता है, इस अजनबी शहर में कोई तो है जो हमारी राह में फूल बिछाये खड़ा है कि आओ प्यारे इस जगह तुम्हारा स्वागत है। काहे अकुलाएं, खिसियाएं बाइक पर दौड़े जा रहे हो। चिंता न करो …. काम गंभीर जरूर है,पर जरूरी तो नही कि हर वक्त अपनी शक्ल में बारह बजाए रखा जाए। खुश हो जा प्यारे…….कि नीले रंग ही सही, पर कितने खूबसूरत तरीके से खिलाया है मैंने इन्हें। दरअसल, इन्हें बड़ी नाजों से पाला है! बस तुम्हारे लिये बिछाये हैं मैंने ये।
इसके बाद मैं एक गहरी सांस लेता हूं और मन ही मन कहता हूं कि सच तो कह रहे हो दोस्त!काम के साथ थोड़ा मुस्कुराया भी जा सकता है… खेला जा सकता है…. गाना गाया जा सकता है….. चंद अल्फाजों को लिखा जा सकता है। कितना कुछ किया जा सकता है।
इस तपती दोपहरी में कितना कुछ अनकहे ही कह जाते हो गुलमोहर। किसने लगाया होगा तुम्हें, कैसे पाला होगा तुम्हें…. कैसे पाला होगा इस सर्पीली सड़क के किनारे। बहुत मेहनत लगी होगी न तुम्हें पनपने और पनपाने में। हम कहां इतनी मेहनत कर पाते हैं। पर करना तो चाहिए। चलो….. थोड़ा तुम्हें ही समझने में मेहनत कर ली जाए।
तो गुलमोहर बाबू मुझे यही पता है कि तुम्हारा जन्मस्था ब्राजील है, लेकिन तुम गोपेश्वर कैसे आए होंगे! खैर तुम्हारे फूलों से यही लग रहा है कि तुम्हें भी मेरी तरह गोपेश्वर बहुत पसंद आ रहा है। सुना है कि तुम्हारे पुरखों को भारत आये फिलहाल दो सौ साल ही हुये हैं। तो अभी समाज में जैसा मौसम चल रहा है, उसे देखते हुए मेरी सलाह है कि खबरदार हो जाओ गुलमोहर! कहीं देश के ठेकेदार बने खास किस्म के लोग तुम्हें भी विदेशी न बोल दें। लेकिन चिंता न करों…. यहां के आमजन ने तुम्हारे फूलों का उपयोग कृष्ण की मूरत को सजाने में कर लिया है। तभी तो तुम्हें कृष्ण चूड भी कहते हैं।
सुनो यार….. लेकिन तुम्हारे नजदीक जब अपनी मोटरसाइकिल आते ही ये कीड़े-मकोड़े जिस गति से नाक, कान, आंख मंे घुसते हैं न, वह जरा खराब लगता है। लेकिन जब तुम्हारी जासूसी की तो पता लगा कि तुम तो सड़क-किनारे खड़े भरी पूरी शहद की फैक्ट्री हो यार! खूब शहद होता है तुम्हारे फूलों मंे। तुम्हारी शाखाओं में फूल लगते ही मधुमक्खियां डेरा डाल देती हैं यहां। खूब शहद बटोरती होंगी न!
हम तो तुम्हें गुलमोहर बुलाते हैं वो भी नीला गुलमोहर लेकिन तुम्हारा ब्राजीली नाम तो जैकरंडा है और ये वनस्पति विज्ञानी तुम्हें जैकरंडा मिमोसिफोलिया कहते हैं। हम भारतीय भी गजब के हैं न। चीज कहीं की भी हो नामकरण संस्कार जरूर कर लेते हैं। तभी तो तुम्हारा नाम बंगाल के लोगों ने कृष्णचुरा तो कन्नड़ में केम्पू तोराई रख दिया। तुम्हें इतने नामों से कभी गुदगुदी नहीं लगती क्या। वैसे सुना है तुम तो कैसलपिननियासी (caesalpiniaceae) परिवार के हो और तुम्हारा बॉटनिकल नाम जैकरंडा मिमोसिफोलिया है। और बाबू मोसाय तुम तो पांच साल के होते ही फूलों से गुलजार होने लगते हो।
तुम्हारे फूलों के बाद फल भी तो महनमोहक लगते हैं। इन्हें फल के बजाय बीजों की टोकरी कहूं तो ज्यादा बेहतर होगा। करीब करीब सीपी की तरह होते हैं तुम्हारे ये फल! और जब खुलते हैं तो दर्जनों बीजों को फैला देते हो धरती पर ताकि खूब सारे फूल खिलें इस धरती को सुंदर बनाने के लिये।
1978 में एक फिल्म बनी थी जिसका नाम था देवता। उस फिल्म में गुलजार साहब ने तुम पर बहुत ही रूमानियत भरा गीत लिखा है। पता है न तुम्हें। अरे वहीं गीत-गुलमोहर तुम्हारा नाम होता, मौसमे गुल को हंसाना भी हमारा काम होता।
गुलमोहर तुमने कभी लेखक और गायककार स्टीव टिलसम का ओ जेकरेंडा गीत सुना है। कभी फुर्सत हो तो सुनना प्यारे बिन हवा के झूमने न लगो तो बताना।
उत्तराखण्ड की समाजकर्मी गीता गैराला दी बता रही थी कि तुम्हारे फूलों के रंग को फेमनिस्ट कलर भी कहा जाता है। और शिक्षिका साथी मोनिका भण्डारी तो तुम्हारे फूलों के रंग की तरह के खूब सारे सूट सिलवाना चाहती हैं। तुम तो छा रखे हो।
अरे एक बात तो बताना ही भूल गया। पता है बीते साल हमने भी कुछ बीज रोपे थे गोपेश्वर के सामने वाली धार में। वहां एक नन्हा सा पौधा उग भी गया है। सोचो जबये छोटा सा पौधा बड़ा वृक्ष बनकर फूलों से दला होगा। बहुत से प्रेमी जोड़े इसके नीचे फोटो खिचांएगे। बहुत से मधुमक्ख्यिां इसका शहद बटोरने आएंगी। फिर देखना प्यारे हम नहींभी होंगे लेकिन हम होंगे तुम्होरे फूलों में! बस तुम यूंही खिलते रहो प्यारे!

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