यही तो सीखने का जश्न ठैरा... -

यही तो सीखने का जश्न ठैरा…

hys_adm | August 9, 2020 | 2 | लोकज्ञान , शिक्षा , स्कूल

सुबह आठ बजे हैं। चटक धूप में गोपेश्वर की चारों ओर की पहाड़ियों पर बर्फ चमक रही है। चमोली जनपद के दूरस्थ क्षेत्रों से बच्चे और उनके शिक्षक गोपेश्वर में जुटने लगे हैं। अपने हाथों में चार्ट, फाइल और खूब सारे मॉडल धरे वे अपने रचेज्ञान का जश्न मनाने के लिये पहुंच रहे हैं। सभागार आते ही अपने स्टॉल पर चार्ट को टांगने, मॉडल को करीने से जमाने में व्यस्त हो जा रहे हैं। चार्ट और मॉडलों को सजाने के लिये बच्चे और शिक्षक-शिक्षिकाएं ऐसे रमे हुये हैं कि पहचानना मुश्किल हो रहा है कि कौन शिक्षक-शिक्षिका है और कौन बच्चे! सभी जुटे पड़े हैं अपने स्टॉल को दुनिया का सर्वोत्तम स्टॉल बनाने में।
फिर मंच से धै लगती है सभी का भौत-भौत स्वागत है जनपदस्तरीय बाल शोध मेले में। तालियों से हाल गूंजता है। फिर बच्चों को बाहर रंगों से भरी थालियों के पास आमंत्रित किया जाता है और वे अपने हाथों से बुकरम के कपड़े पर अपने नन्हें हाथों की छाप से अमूल्य हस्ताक्षर गढ़ते हैं। इसके बाद बच्चे, शिक्षक और शिक्षाकर्मियों का दल बाल कविता को हाव-भाव के साथ करने में जुट पड़ता है। कुछ मोबाइल धारी लोग गाते-गाते गाते फोटो भी किलक्याते हैं।
मंच पर मुख्य अतिथियों का नाम मंचा सीन होने के लिये पुकारा जाता है और सभी स्कूलों से कुछ-कुछ बच्चे मंच की ओर सधे कदमों से लपक पड़ते हैं। बतौर शोधकर्ता बच्चे बाल शोध मेला क्या होता है? इसकी प्रक्रिया कैसे की जाती है, शुरूआत में किस तरह लग रहा था, इसको सीखने के दौरान उन्होंने क्या-क्या देखा, दस्तावेजीकरण कैसे किया, शिक्षकों ने कहा-कहां मदद की, समुदाय ने किस तरह उनका उत्साह बढ़ाया ये सब बच्चे अपनी रौ में बहते हुये मंच से सुना रहे थे। बच्चों की आंखों में चमक और बात रखने में दृढ़ता को देखते हुये उनके शिक्षक कौतुहल और उत्साह से तालियों से सभागार को गुंजायमान कर रहे थे।
इसके बाद सभी प्रतिभागी एक-दूसरे के स्टॉल पर जाकर बच्चों के शोध को जानने-समझने के लिये जुट गये। खूब सारे सवाल बच्चों, शिक्षकों और शिक्षाकर्मियों ने बच्चों से किया। स्थानीय इतिहास, संस्कृति, नापतौल के परम्परागत इकाइयां और उनका प्रचलित इकाइयों से संबंध, स्थानीय जड़ी बूटी, लोक में भाषा और लोक की भाषा, निर्माणाधीन रेल परियोजना की जमीनी पड़ताल आदि थीम पर बच्चों ने शोध को प्रस्तुत किया। इनथीम का बहुत से विषयों के साथ कैसे जुड़ाव हो पा रहा है इसको भी उन्होंने बड़ी संजीदगी के साथ रखा।
फिर आई भोजन की बारी। सभी ने मिलकर भोजन किया और फिर से मंच से बाल शोध मेले को लेकर बच्चों ने विस्तार से अपनी राय रखी। भोजन के बाद कुछ शिक्षक-शिक्षिकाओं ने भी बाल शोध मेले के अनुभवों को रखा।
सभी अनुभवों का सार था कि इस प्रक्रिया में सीखने का मजा बहुत है। गणित, भाषा, विज्ञान, इतिहास, भूगोल को इन थीम के जरिये सहजता से सीखना हुआ है। इस प्रक्रिया में समुदाय में लोगों ने स्कूल की पहल को हाथों-हाथ लिया और खुलकर मदद की। बहुत सी बातें जो शिक्षकों और बच्चों को अपने समुदाय की पता नहीं थी उनको भी इस प्रक्रिया में जानने-समझने का मौका मिला। भाषा, इतिहास, गणना, जनसांख्यिकी, नवनिर्माण, विकास जैसी बड़ी अवधारणाओं के साथ वे आमजन के जीवन की स्पष्ट तस्वीर भी खींच पा रहे थे। इस तस्वीर में बहुत कुछ और बेहतर होने की सिफारिसें और भविष्य की चिंताएं स्पष्टता से उभर रही थी। समाज में तेजी से हो रहे बदलाव में भाषा, संस्कृति, परम्परायें और सहकार के तमाम अवसरों में आ रही कमी की ओर भी बच्चे ध्यानाकर्षण कराया। अपने स्कूल और समुदाय में की गई खोजबीन को बच्चे बहुत ही प्रभावी और आत्मविश्वास के साथ रखा।
मंच में बैठी नेहा को मैंने कौतुहलावश पूछा आज से पहले आप इस तरह मंच पर बैठी हो। उसने बड़ी मासूमियत से कहा मैं तो पहली बार गोपेश्वर आई हूं। मेरा ध्यान बरबस इस ओर गया कि कितने बच्चे होंगे जो आज पहली बार अपने घर-स्कूल से दूर अपने सीखे को साझा करने पहली बार जिला मुख्यालय आये होंगे। सीखने के इस जश्न के साथ इनके जीवन में आज के दिन की यह शैक्षिक यात्रा भी तो बहुत मायने रखती है।
वैसे बाल शोध मेले की अवधारणा को देखा जाए तो वो यही है कि सीखने के केन्द्र में बच्चा हो। वो पाठ्यपुस्तक की किसी थीम का चयन करके शिक्षकों और समुदाय की मदद से सवाल तैयार करने, जवाबों को खोजन और उनके विश्लेषण करने की ओर बढ़े। इस प्रक्रिया में वह अपने सीखे हुये को लिखित और मौखिक तौर पर दूसरों के साथ साझा करें। इस प्रक्रिया में सीखने का आनंद और शिक्षक और समुदाय के निरन्तर सहयोग का होना अतिआवश्यक होता है।
इस अवधारणात्मक बात को जनपदस्तरीय मेले में पूरा होते हुये देखना सुखद था। अंत में सभी प्रतिभागी बच्चों, शिक्षकों और समुदाय को बड़े स्नेह के साथ स्मृति चिन्ह भेंट किया गया।
फिर मिलेंगे, जरूर मिलेंगे और सीखने के जश्न की यात्रा जारी रहेगी ऐसा ही एक-दूसरे से वादाकर अपने घरों की ओर विदा ले रहे थे बच्चे, शिक्षक, समुदाय और शिक्षाकर्मी। इन सबको देखकर मन में आ रहा था सच में यही तो सीखने का जश्न ठैरा।

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