बचपन! खेल, असंवेदना से संवेदना की जात्रा! -

बचपन! खेल, असंवेदना से संवेदना की जात्रा!

hys_adm | August 9, 2020 | 0 | लोकज्ञान , शिक्षा

फ्लाई की फोटो देखते ही बरबस बचपन याद आ जाती है। बचपन में पानी वाली जगहों के किनारे इनको पकड़ते के लिये दौड़ना आम होता है। कभी कभी इनको धागा बांधकर उड़ाते थे। इस प्रक्रिया में हम आसमान में यदा-कदा दिखने वाले हैलीकाप्टर या जहाज के पाइलट जैसी फीलिंग से सराबोर होकर खेलते थे। कभी कभार गांव घरों के बुजुर्ग हमें डपटते थे कि बेचारे को मार डाला, पाप लगेगा। उनकी डांट डपट हमारे उत्साह और खेल के आगे बहुत टिकता नहीं था।
जिस ड्रैगनफ्लाई की हमारे कारनामों से सामत आई रहती थी। कौन जानता था तब कि यह हमारे लिये कितना जरूरी है। जी हां इसकी तमाम प्रजातियां रूके हुये पानी में मच्छरों के लार्वा को खाती हैं। यानि यह हमारे आसपास के मच्छरों की आबादी को नियंत्रित करती है।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया तो ड्रैगनफ्लाई की उपयोगिता को देखते हुए दिल्ली जैसे मच्छरों से परेशान राज्य ड्रैगनफ्लाई को बढ़ावा देने के लिये 2015 से ड्रैगनफ्लाई महोत्सव मना रहा है। इसके लिये बकायदा हर साल बरसात के मौसम में महोत्सव में ड्रैगनफ्लाई के संरक्षण और बढ़ोतरी का अभियान चलाया जा रहा है।
बचपन बीता, इस बीतने के साथ-साथ किताबों और संजीदगी से जीव जगत में काम कर रहे लोगों से पाला पड़ा। धीरे-धीरे हमारे मन में पर्यावरण, पशु-पक्षी, कीट के प्रति रूचि और प्रेम बढ़ा। आज जब अपने किचन गार्डन में तितली, म्वारों की आवक को देखता हूं तो उनको कोई दिक्कत न हो उस लिहाज से वहां से हट जाता हूं। बस दूर से ही उनको निहारने के साथ अपने बेटे को भी ऐसा करने के लिये प्रेरित करता हूं।
मेरे संदर्भ में यह जो नई दृष्टि मिली है वह बचपन की किताबें देने में बहुत सफल नहीं रही। लेकिन अभी के संदर्भ में देखता हूं कि इस तरह की दृष्टि देने में परिवेशीय अध्ययन विषय काफी बातचीत की गुंजाइश स्कूलों में देता है। वह घर-परिवार, भोजन, जल, परिवेश आदि के इर्द-गिर्द समानूभूति को जगाने और इनके गहन अवलोकन की ओर ले जाने का प्रयास करता है। मुझे पूरा विश्वास है कि यदि शुरूआती कक्षाओं में बच्चों के साथ खूब सारी बातचीत, अवलोकन, तथ्यों और आंकड़ों का एकत्रीकरण कर उनके विश्लेषण की ओर बच्चों के साथ सहयात्री के तौर पर शिक्षक समाज जाता है तो बच्चों में यह गहन संवेदनशीलता पनपेगी। वह अपने परिवेश के तमाम जीव-वनस्पति और मानव जगत के प्रति सम्भाव और समानुभूति का भाव उपजायेंगे।
फिर देखियेगा जब वो भविष्य में बतौर नागरिक अपनी उपस्थिति दर्ज करायेंगे तो वे इन जीवों के प्रति प्रेम के साथ ही इस दुनिया से प्रेम करने की ओर बढ़ेंगे। तब वे किसी के भोजन, जीवन पद्धति पर फबतियां नहीं कसेंगे। तब वो जाति, धर्म, जेण्डर के आधार पर अलगाव न तो पैदा करेंगे और न ही अलगाव महसूस करेंगे। अतीत में बहुत कुछ अच्छा तो बहुत सी बातें हैं जो अच्छी नहीं हुई हैं। जो बातें अच्छी नहीं हो पाई वे संदर्भों की देन है। ऐसे में उनको दूर करने की ओर हमारे नौनिहाल प्रयासरत दिखेंगे।

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